Saturday 24 April 2021

ब्रह्मचर्य की महिमा और शक्ति

महर्षि दयानंद के जीवन की ब्रह्मचर्य को लेकर कुछ ऐसी सत्य घटनाएँ है, जो आश्चर्यजनक है किन्तु सत्य है । यह दृष्टान्त आज के युवाओं के लिए प्रेरणा के स्त्रोत हो सकते है । इस उद्देश्य को लेकर उनमें से एक  दृष्टान्त का उल्लेख इस लेख में किया गया है ।

उदयपुर के महाराणा सज्जन सिंह महर्षि दयानंद के मित्र थे । बाद में शिष्य बन गये । एक बार महर्षि दयानंद से उदयपुर गये तब महाराणा सज्जन सिंह उनके निवास स्थान पर उनसे मिलने गये ।

महाराणा सज्जन सिंह ने कहा – “मैं धन्य हो गया, स्वामीजी ! जो आपके परम पवित्र चरण मेरी राजधानी में पड़े । मैं चिरकाल से आपके आगमन की प्रतीक्षा कर रहा था । सारा उदयपुर आपके दर्शन के लिए उत्सुक था ।” इस तरह प्रणाम करते हुए महाराणा ने स्वामीजी का स्वागत किया ।

मुस्कुराते हुए स्वामीजी बोले – “ चिरंजीव हो !” कुर्सी की ओर संकेत करते हुए कहा –“आइये ! विराजिये !”

महाराणा – “ नहीं नहीं स्वामीजी ! मैं नीचे ही ठीक हूँ ।” इस तरह शालीनता का परिचय देते हुए महाराणा नीचे बैठ गये ।

इसके बाद एक दुसरे की कुशल क्षेम पूछने के बाद महाराणा ने स्वामीजी से उपदेश देने के लिए आग्रह किया ।

तब स्वामीजी बोले – “ राजन ! मुझे यह देखकर बड़ा दुःख होता है कि प्रत्येक भारतीय विषय वासना में पड़कर अपने मन और शरीर के ओज को खो रहा है । निरंतर बढ़ती विलासिता ब्रह्मचर्य जैसे पवित्र को विचार को धूमिल करती जा रही है । साधनों से संपन्न लोग जैसे राजा और उनके सेवकों पर वासना का भूत बुरी तरह से हावी है । जिसके कारण वे अपने राजकाज के कार्य भी यथाविधि संपन्न नहीं कर  पाते । यदि ऐसे ही चलता रहा तो जल्द ही पुरे भारत पर मानसिक गुलामी छा जाएगी ।”

महाराणा बोले – “ आपकी बात सही है, स्वामीजी ! निसंदेह मनुष्य ब्रह्मचर्य से दूर होकर पाप की ओर बढ़ रहा है । लेकिन ब्रह्मचर्य की ऐसी शिक्षा का व्यापक स्तर पर शिक्षण भी तो संभव नही ।

स्वामीजी बोले – “ क्यों संभव नहीं ? ब्रह्मचर्य की महिमा और शक्ति को उत्तमता से बताकर इस अधर्म और अत्याचार से लोगों को बचाया जा सकता है ।”

तब महाराणा बोले – “स्वामीजी ! आप एक बार जोधपुर जाकर महाराज यशवंत सिंह की को संयम की महिमा बताइए । हो सकता आपके कहने से वो सही राह पर आ जाये ।”

स्वामीजी – “ जी मैं जोधपुर अवश्य जाऊंगा और महाराज यशवंत सिंह को इस महापाप से मुक्ति दिलाऊंगा ।” इतना कहकर स्वामीजी और महाराणा दोनों खड़े हो गये और बाहर की ओर चलने लगे । जाते – जाते महाराणा स्वामीजी को संदेह से देख रहा था ।

आखिरकार महाराणा बोल उठा – “ स्वामीजी ! आप ब्रह्मचर्य की बड़ी महिमा गाते है, बड़ी शक्ति बताते है । जहाँ तक मुझे पता है, सभी आपको अखण्ड ब्रह्मचारी भी मानते है । किन्तु मुझे तो आपमें कोई विशेष शक्ति दृष्टिगोचर नहीं होती ।

राजा की यह बात सुनकर स्वामीजी उसकी दुविधा समझ गये और बोले – “ क्या आपने कभी मेरी शक्ति की परीक्षा की है ? बिना परीक्षा किये आप अपने मन से कुछ भी अनुमान लगा सकते है । आपको पता भी है ! भारतवर्ष में चिरकाल से एक बाल विवाह की एक ऐसी बीमारी चली आ रही है जो ब्रह्मचर्य आश्रम को कभी पूरा नहीं होने देती है । संभवतः मेरे माता – पिता का भी ब्रह्मचर्य आश्रम पूर्ण नहीं हुआ होगा । जिसका प्रभाव संतान पर पड़ना अवश्यंभावी है । जब मूल ही कच्ची है तो वृक्ष क्या खाक चलेगा । जब शरीर का विकास ही नहीं हुआ तो बल और बुद्धि का विकास कहाँ से होगा ? उस समय की कल्पना करो जब भीष्म और भीम जैसे धुरंधर योद्धा हुए । अर्जुन और कर्ण जैसे धनुर्धर हुए । राम और लक्ष्मण जैसे परमवीर हुए । जिन्हें इतिहास आज भी जानता है ।”

यह सुनकर महाराणा बोला – “ संभव है स्वामीजी ! आपकी बात सही हो और आज के ब्रह्मचर्य पालन में पहले जैसी शक्ति न रही हो, लेकिन फिर भी एक ब्रह्मचारी और एक गृहस्थ में कोई तो विशेष अंतर होना चाहिए ना । यदि ऐसा कोई प्रत्यक्ष प्रमाण आप दे सके, मुझे भी विश्वास हो जाये ”

स्वामीजी मुस्कुराते हुए बोले – “ अच्छी बात है, जब समय आएगा तो आपको इसका प्रमाण भी मिल जायेगा ।”

जाते – जाते महाराणा बोला – “ माफ़ कीजियेगा स्वामीजी ! आपको बुरा लगा हो तो । मेरी दुविधा थी अतः पूछ लिया ।  बाकि आप तो हमारे गुरु है । प्रणाम !”

स्वामीजी – “ इसमें माफ़ी मांगने जैसा कुछ नहीं । आपने अपने मन की शंका मुझे बताई, यह तो अच्छी बात है ।”

यह कहकर महाराणा अपने अपने दो धोड़े की बग्घी पर सवार हो गया और अपने सारथि से बोला, “चलो !” सारथि ने घोड़ो चलने का इशारा दिया । लेकिन घोड़े चले नहीं । उसने हंटर बरसाना शुरू कर दिया लेकिन बग्घी जहाँ की तहाँ खड़ी हिलने का नाम नहीं ले रही थी । बिचारे घोड़े उसी जगह कूद – कूदकर थक गये । तभी महाराज ने पीछे मुड़कर देखा तो देखकर हैरान रह गये । अखण्ड ब्रह्मचारी महर्षि दयानंद ने बग्घी का एक पहिया अपने एक हाथ से पकड़ रखा था ।

स्वामीजी बोले – “ देख लो महाराणा ! ब्रह्मचर्य की शक्ति का यह है प्रत्यक्ष प्रमाण । अब मिल गया आपको अपने प्रश्न का उत्तर । ये तो दो घोड़े है, यदि चार भी होते तो भी नहीं हिलने वाली थी ।”

महाराणा झट से बग्घी से उतरकर स्वामीजी के पेरों में गिर पड़ा और बोला – “ धन्य हो प्रभु, आप धन्य हो । यह मेरी भूल थी जो मैंने आपको चुनौती दी । आपसे प्रमाण माँगा । अब मैं समझ गया हूँ कि ब्रह्मचर्य की ताकत के आगे किसी की नहीं चलती । अब मेरी शंका का समाधान हो चूका है । मुझपर कृपा करने के लिए कोटि कोटि नमन !”

उसके बाद स्वामीजी ने आशीर्वाद देकर सकुशल महाराणा को विदा किया ।

शिक्षा – इस सत्य घटना से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें भी महर्षि दयानन्द की तरह यथासंभव संकल्पपूर्वक संयम का पालन करके अपनी शारीरिक और मानसिक शक्तियों का विकास करना चाहिए ।

Tuesday 20 April 2021

Rama was a Perfect Incarnation

Rama was a Perfect Incarnation:
" Ordinary people do not recognise the advent of an Incarnation of God. He comes in secret. Only a few of His intimate disciples can recognise Him. That Rama was both Brahman Absolute and a perfect Incarnation of God in human form was known only to twelve rishis. The other sages said to Him,  'Rama, we know You only as Dasaratha's son.' 

"Can anyone comprehend Brahman, the Indivisible Existence-Knowledge-Bliss Absolute?  He alone has attained perfect love of God who, having reached the Absolute, keeps himself in the realm of the Relative in order to enjoy the divine lila. A man can describe the ways and activities of the Queen if he has previously visited her in England. Only then will his description of the Queen be correct. Sages like Bharadvaja adored Rama and said:  "O Rama, you are nothing but the Indivisible Satchidananda. You have appeared before us as a human being, but You look like a man because You have shrouded Yourself with Your own maya." These rishis were great devotees of Rama and had supreme love for God."

-Sri Ramakrishna 
(to the devotees)

Monday 5 April 2021

HOW INDIA HAS EXPERIENCED MANY A DECAY BUT AVOIDED DEATH

As found in the book:
UNIVERSAL MESSAGE OF 
THE BHAGAVAD GITA
Written By: SWAMI RANGANATHANANDA

HOW INDIA HAS EXPERIENCED MANY A DECAY BUT AVOIDED DEATH:

Our Indian culture has passed through all these phases. Take the Vedic period, great culture. What struggles and hardships people endured to build it up. The mind was active and energetic and had great vigour. This continued till the Epic period. There was a tremendous setback; the "Mahabharata" war at Kurukshetra, more than three thousand years ago, was a great setback! The best of the race died in the war, thousands of them. That is considered to be a watershed in our history. Sometimes later, new strength came but again it declined. It went on, like waves rising and falling, but the uniqueness, as I mentioned before, is that we decay but we never die. Some new power comes and we are refreshed once again. What a depth we had gone to in the last century! When we read the literature of the time, we can see to what low level the human mind in India had degenerated. All the original strength, vigour, and creativity disappeared, and we were a half-dead people. Out of that state came a tremendous awakening and new developments. How did it come about? Here comes the great idea. Not only does a great spiritual teacher arrive on the scene and raise the people, but sometimes a cultural cross-fertilization also takes place. Western culture helped destroy many of our foolish notions. It showed us new paths and made us more energetic. This was not the intension of the Westerners, but that was the result; infusion of Western ideas into India resulted in a new awakening and a new strength and youthfulness.

THE LAST DAYS OF MRINALINI DEVI AND SRI AUROBINDO’S LETTER TO HIS FATHER-IN-LAW

THE LAST DAYS OF MRINALINI DEVI AND SRI AUROBINDO’S LETTER TO HIS FATHER-IN-LAW This is the last of the posts we have published ...