📃 वैसे तो मार्च सन् 1975 में मैंने प्रथम दस दिन शिविर लिया किंतु मुझे इगतपुरी में प्रथम एक माह के दीर्घ शिविर में भाग लेने का भी सौभाग्य प्राप्त हुआ।
इस शिविर के पहले मेरी कमर में दर्द था जो बिना किसी औषधि के शिविर में ही समाप्त हो गया। इसी शिविर में मैंने उत्पाद और व्यय को ठीक से समझा, जो मेरे जीवन में रामबाण सिद्ध हुआ और हो रहा है। दर्द में जब उत्पाद समाप्त कर व्यय पर ही ध्यान लगाया जाए तो दर्द समाप्त हो जाता है।
पांच साल पहले मेरे हार्निया का ऑपरेशन गुजरात में सिद्धपुर, पाटन में एक प्राइवेट नर्सिंग हॉस्पिटल में हुआ। ऑपरेशन रात्रि को 10 बजे हुआ और मुझे दर्द निवारक गोलियां रात्रि में लेने की सलाह दी गई। मैंने
कोई गोली नहीं ली और उक्त विधि का प्रयोग करके आराम से सो गया। सुबह डॉक्टर साहब ने गोलियां न लेने पर आश्चर्य प्रकट किया तो इसे मैंने उन्हें अपनी साधना का कमाल बताया।
मुझे पुरानी आर्थराइटिस भी है और मैं मन को दोनों घुटनों से होकर प्रति दिन गुजारता हूं। अतः घुटने थोड़े सख्त अवश्य हो गये हैं किंतु मुझे यह बीमारी अब नहीं सताती। कभी दर्द जरूर होता है तो मैं उत्पाद-व्यय के ज्ञान से ठीक कर लेता हूं। हां, साक्षीभाव प्रत्येक अवस्था में आवश्यक है।
मुझे डॉक्टर ने एनलार्ड प्रौस्ट्रेट की बीमारी बताई, क्योंकि रात्रि में पेशाब करने के लिए अधिक उठना पड़ता था। मैंने दवाइयां भी लीं, कई बार ऑपरेशन का भी विचार किया, किंतु अब मुझे ऑपरेशन का विचार ही नहीं आता है। क्योंकि मैं प्रोस्ट्रेट पर साक्षीभाव से ध्यान केंद्रित करता रहता हूं।
मेरी आयु 73 साल की है। अतः कहीं न कहीं दर्द होता रहता है। सतिपट्ठान की शिक्षा से अब यह दर्द मुझे परेशान नहीं करता क्योंकि 'अरे कल्याण हो गया। इस पर ध्यान लगाने से अपने पूर्व जन्म के संस्कारों का क्षय होता है'- गुरुजी के ये वाक्य मुझे सांत्वना देते हैं और पुराने संस्कारों को निकालता निकालता दर्द भी समाप्त कर लेता हूं। प्रत्येक विपश्यना बैठक के बाद जो हल्कापन महसूस होता है तो ऐसा मालूम होता है कि व्याधि किस प्रकार आती है और कैसे दूर की जा सकती है।
✍️ बी. के. बिन्जू
(आई. ए. एस. निवृत्त, जयपुर)
पुस्तक: विपश्यना पत्रिका संग्रह (भाग-7)
प्रकाशक : विपश्यना विशोधन विन्यास ॥
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✺ भवतु सब्ब मङ्गलं ✺
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