Thursday 3 December 2020

ध्यान धर्म तथा साधना

स्थान – भद्रक
१९१५
भगवान् कल्पतरु हैं – उनके पास जो जैसा चाहता है, वह वैसा पाता है। जिसका जैसा भाव, उसका वैसा लाभ। दुर्लभ मनुष्य-जन्म पाकर भी जब जीव उसका सदुपयोग नहीं करता, भगवान् के पादपद्मो में मन न लगा असार माया-मोह के समुद्र में डूबे रहकर सोचता है, “मैं मजे में हूँ”, तब भगवान् भी कहते हैं, “मजे में रहो।” और फिर जब दुःख-कष्ट पाकर ‘हाय हाय’ करते हुए, वह सोचता है, “इस जीवन में मैंने क्या किया?” तब वे भी कहते हैं “हाँ क्या किया?” मनुष्य कल्पतरु के नीचे बैठा हुआ है; उनके पास जो माँगेगा, वही पायेगा; देवत्व चाहे तो देवत्व मिलेगा और पशुत्व चाहे तो पशुत्व।
मनुष्य को उन्होंने दो चीजें दी हैं – विद्या और अविद्या। विद्या दो प्रकार की है – विवेक और वैराग्य। इनका आश्रय लेने पर मनुष्य भगवान् की शरण में आता है। अविद्या छः प्रकार की है – काम, क्रोध, इत्यादि। इनका आश्रय लेने पर मनुष्य पशु-भावापन्न होता है। विद्या का culture (अनुशीलन) करने से अविद्या का नाश होता है, और अविद्या का culture करने से ‘मैं’ और ‘मेरा’ यह बोध बढ़कर मनुष्य को संसार में बद्ध कर देता है तथा भगवान् से बहुत दूर ले जाता है, जिससे जीव को अशेष दुःख-कष्ट सहना पड़ता है। जीव को उन्होंने सिर्फ विद्या और अविद्या ये दो चीजें ही दी हों, ऐसी बात नहीं, बल्कि इन दोनों में भला-बुरा क्या है, इसका विचार करने की शक्ति भी दी है। मनुष्य जिसे भला समझता है, उसे ग्रहण करता है और फल भी तदनुरूप पाता है।
मनुष्य दुःख-कष्ट पाने पर भगवान् को जो दोष देता है, वह उसकी भूल है – बहुत बड़ी भूल। तुम अपनी पसन्द के अनुसार रास्ता तय करते हो, और उसी के अनुसार भला-बुरा फल भोगते हो। इसके लिए उन्हें दोष देने से कैसे चलेगा? क्षणिक सुख के मोह में इतने भूले हुए हो कि भले और बुरे के विचार करने का भी तुम्हें समय नहीं रहा। आग में हाथ डालने से हाथ जलेगा ही; पर यह आग का दोष है या तुम्हारा? ठाकुर कहते थे, “दीये का स्वभाव है प्रकाश देना। अब यदि कोई उस प्रकाश में चावल पका रहा हो, या कोई जालसाजी कर रहा हो या भागवत पढ़ रहा हो, तो यह क्या प्रकाश का दोष-गुण है?” उसी प्रकार भगवान् ने मनुष्य को भले-बुरे दोनों रास्ते दिखा दिये हैं। अपनी इच्छानुसार select (चुनाव) कर लो। 
जिसका जैसा भाव होगा, वैसा लाभ होगा। विवेक-वैराग्य का आश्रय लो, तो उन्हें पाकर आनन्द के अधिकारी होगे। और संसार का यदि आश्रय लो, तो इस जीवन में थोड़ा-बहुत क्षणिक सुख अवश्य पाओगे, किन्तु भविष्य को अन्धकार-समुद्र में डुबोकर अनन्त दुःख पाने के लिए भी तुम्हें तैयार रहना होगा। ऐसा कहने से नहीं बनेगा कि सिर्फ सुख ही चाहिए, दुःख नहीं। एक की इच्छा करने से दूसरा आएगा ही, तुम चाहो या न चाहो।
ठाकुर कहते थे, “मलय पवन के स्पर्श से जिन सब वृक्षों में सार है वे चन्दन हो जाते हैं, किन्तु सारहीन वृक्षों का – बाँस, केले आदि का – कुछ भी नहीं होता।” दो प्रकार के मनुष्य होते हैं – एक वे हैं, जिनमें सत्-कथा सुनने से ही विवेक-वैराग्य जग जाता है, संसार-सुख तुच्छ मालूम होने लगता है और उनका कृपा-कटाक्ष पाने के लिए मन व्याकुल हो उठता है। उन्हें जानने के लिए, जीवन-मरण की पहेली को समझने के लिए दृढ़-प्रतिज्ञ हो जाता है। शरीर रहे या जाय, इसकी वह चिन्ता नहीं करता; भगवान् को पाने का दृढ़ संकल्प लेकर वह साधन-भजन आरम्भ कर देता है। ये लोग जीवन मेंे sucessful (सफल) भी होते हैं। एक प्रकार के लोग और हैं, उनके सामने कितना ही बड़ा आदर्श क्यों न रखो वे किसी भी दशा में चेतेंगे नहीं। वे सोचते हैं – “इस संसार में मैं हमेशा जीवित रहूँगा”, “मेरे न रहने से काम नहीं चलेगा”, “हाथ में जो आया है, उसका भोग न करूँ, तो मूर्ख ही सिद्ध होऊँगा।” – ऐसा सोचकर ये लोग अपने को घसीटकर अँधेरे कुएँ में डाल लेते हैं और असीम दुःख-कष्ट भोगते हैं।
चन्दन की सुगन्धा enjoy  (उपभोग) करना अच्छा है या दुर्गन्ध का उपभोग करना? शान्ति अच्छी है या अशान्ति? – यह अच्छी तरह से समझ लो; समझकर एक रास्ता ठीक कर लो। समय तुम्हारे लिए रुकेगा नहीं, वह नदी के स्रोत के समान लगातार बहता चला जा रहा है। बाद में ‘हाय हाय’ करने से कुछ भी हाथ नहीं आएगा। जो समय बीत चुका है, उसे वापस लाने का कोई उपाय नहीं, उसके लिए सोचने से भी कोई लाभ नहीं। जो समय अभी तुम्हारे हाथ में है, उसका सदुपयोग करो, जिससे अब एक क्षण भी वृथा न जाय। अभी से मन को इस तरह गढ़ो, जिससे उनका चिन्तन, उनका स्मरण-मनन छोड़ और अन्य विषय मन में स्थान न पाय। इने-गिने ही दिन तो बचे हैं और वे भी क्रमशः बीते जा रहे हैं। व्यर्थ समय मत गँवाओ।
व्याकुल हृदय से उनके पास प्रार्थना करो, “हे प्रभो, मुझे सद्बुद्धि दो, मुझे अपना बना लो। ‘मैं’-‘मेरा’ भाव दूर कर दो। ‘मै’-‘मेरा’ कहते कहते बहुत धक्के खाये हैं – अब ‘तुम’-‘तुम्हारा’ कहना सिखाओ।” देखते नहीं, सदैव के लिए आँखें मूँद लेने पर तुम्हारा क्या कुछ रहता है? ‘मेरा’ कहकर जिन्हें जकड़े हुए हो, वे क्या तुम्हारे साथ जाएँगे? उनका समय आने पर वे अकेले चले जाएँगे, तुम्हारी तरफ लौटकर भी नहीं देखेंगे। उन सबको छोड़कर तुम्हें एक अनजान देश में जाना है। जितना ‘मेरा’-‘मेरा’ करोगे, उतनी ही पैर में बेड़ी लगेगी। मनुष्य ‘संसार-संसार’ कहकर मरता है, पर इसमें भला क्या धरा है? जब धक्का खायेगा, तब क्या संसार उसकी रक्षा कर सकेगा? जिसके लिए यहाँ आना हुआ, जिसके लिए यह दुर्लभ मनुष्य-जन्म मिला, उसके लिए कुछ न कर, उसे छोड़कर यदि यहाँ से जाना पड़ा, तो इससे बढ़कर दुर्भाग्य की बात और क्या हो सकती है? अतएव जी-जान से प्रयत्न करो, जिससे खाली हाथ कहीं जाना न पड़ जाय। उनके पास खूब रोओ, व्याकुल हृदय से उन्हें पुकारो। 
सुना है तो, ठाकुर दक्षिणेश्वर में किस तरह रोते थे? – “माँ, और एक दिन बीत गया, अभी तक दर्शन नहीं दिये!” उनके लिए व्याकुल होओ, संसार में क्या धरा है, सिर्फ दुख का ही भण्डार तो है। यहाँ तो रोते रोते दिन बीत गये, वहाँ भी क्या रोते रोते दिन बीतेंगे?
ठाकुर के आश्रय में जब आ गये हो, तो उनकी कृपा अवश्य ही पायी है ऐसा जानना। उनकी कृपा का सदुपयोग करो। कृपामय की कृपा पाकर यदि धारणा न कर सको, आनन्द न पा सको, जीवन-मरण का रहस्य भेदकर उनके नित्य साथी न हो सको, तो फिर तुम्हारे जैसा अभागा इस दुनिया में और कौन है? इस युग के लोग हो तुम सब – युग की हवा शरीर से लगी है, उसका advantage (लाभ) लेना मत छोड़ना। अन्य किसी भी युग में किसी ने इतने सीधे और सहज ढ़ंग से राह नहीं दिखायी – यह opportunity(सुविधा) यदि यों ही गँवा दो, तो फिर बहुत समय तक पछताना पड़ेगा।
युग की हवा के अनुसार पाल तानकर तीव्र गति से बढ़े जाओ। वे रास्ता देख रहे हैं, पाल तानने से ही नौका ठिकाने में पहुँच जायगी। पाल खोल दो, पाल खोल दो। तुम लोगों में यथेष्ट शक्ति विद्यमान है। स्वयं पर विश्वास रखो – ऐसा विश्वास कि उनका नाम सुना है, उनका नाम लिया है, भय और दुर्बलता मुझमें रह नहीं सकती, उनकी कृपा से इस जीवन में ही उन्हें प्राप्त करूँगा। पीछे फिरकर देखना नहीं, आगे बढ़े चलो – उनके दर्शन पाकर धन्य हो जाओगे, मनुष्य-जन्म सार्थक हो जायगा, अपार आनन्द के अधिकारी हो जाओगे।

ध्यान धर्म तथा साधना
page - 100-104

No comments:

Post a Comment

अफजल खां का वध

20 नवम्बर, 1659 ई. - अफजल खां का वध :- बीजापुर की तरफ से अफजल खां को छत्रपति शिवाजी महाराज के खिलाफ भेजा गया। अफजल खां 10 हज़ार क...