अभिन्न ।
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स्वामी सारदानंद जी महाराज कहते हैं ;
श्रीमाँ को, माँ काली का ,पहला दर्शन जयरामवाटी
से दक्षिणेश्वर आते समय ,तारकेश्वर के पास, सड़क
के किनारे स्थित एक, धर्मशाला में हुआ था।..
दक्षिणेश्वर में निवास करते समय श्रीरामकृष्णदेव
विभिन्न विषयों पर माँ सारदामणि की सलाह मांगा
करते थे ।
वे जब किसी बात में स्पष्ट नहीं होती थीं ,----
तब कहती थीं, अभी मैं कुछ नहीं कह सकती ,बाद
में विषय की स्पष्ट धारणा हो जाएगी ,तब आपको बताऊंगी।
माँ ,नौबतखाने में जाकर, मां काली से ,करूण स्वर में प्रार्थना करतीं --फिर उनके मन में जो बात आती ,उसे ठाकुर को कह देतीं।
ठाकुर के जीवन के अंतिम समय में ,वे उनके साथ 'काशीपुर उद्यान' में निवास कर रही थीं। एक दिन
जब वे बड़ी ,दुःख-पूर्ण मनस्थिति में लेटी हुई थीं कि ,
उन्होंने देखा ,लहराते हुये केशों वाली एक सांवली सी महिला आयी और उनके पास ही बैठ गई।
माँ उन्हें पहचान गईं--बोलीं-- तो यह तुम हो?
मां काली ने कहा ~हां~ मैं दक्षिणेश्वर से आई हूं ।
दोनों थोड़ी देर तक बातचीत करते रहे।...
इस बीच माँ ने देखा कि सांवली महिला की गर्दन
एक ओर थोड़ी झुकी हुई है।
मां ने पूछा --तुम्हारा गला और सिर एक ओर झुका
हुआ क्यों है?
माँ काली ने उत्तर दिया~~ 'गले में घाव के कारण'।
माँ बोली -- कैसी विचित्र बात है, ठाकुर के गले में घाव हुआ है, और तुम्हारे गले में भी।
मां काली ने कहा ~~~हां !
इस प्रकार माँ काली ने श्रीमाँ के मन में यह बात बिठा
दी कि वे और श्रीरामकृष्णदेव एक तथा अभिन्न हैं ।
ठाकुर अपने इष्ट के साथ इस तरह जुड़े हुए थे कि
उनके लिए मृत्यु भी ,अमरत्व प्रदान करने वाली हो
गयी ।
जय काली ।
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