Saturday, 12 November 2022

अभिन्न

अभिन्न ।
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स्वामी सारदानंद जी महाराज कहते हैं ; 
श्रीमाँ को, माँ काली का ,पहला दर्शन जयरामवाटी 
से दक्षिणेश्वर आते समय ,तारकेश्वर के पास, सड़क 
के किनारे स्थित एक, धर्मशाला में हुआ था।..
दक्षिणेश्वर में निवास करते समय श्रीरामकृष्णदेव 
विभिन्न विषयों पर माँ सारदामणि की सलाह मांगा 
करते थे ।
वे जब किसी बात में स्पष्ट नहीं होती थीं ,----
तब कहती थीं, अभी मैं कुछ नहीं कह सकती ,बाद 
में विषय की स्पष्ट धारणा हो जाएगी ,तब आपको बताऊंगी।
माँ ,नौबतखाने में जाकर, मां काली से ,करूण स्वर में प्रार्थना करतीं --फिर उनके मन में जो बात आती ,उसे ठाकुर को कह देतीं।
ठाकुर के जीवन के अंतिम समय में ,वे उनके साथ 'काशीपुर उद्यान' में निवास कर रही थीं। एक दिन
जब वे बड़ी ,दुःख-पूर्ण मनस्थिति में लेटी हुई थीं कि ,
उन्होंने देखा ,लहराते हुये केशों वाली एक सांवली सी महिला आयी और उनके पास ही बैठ गई।
माँ उन्हें पहचान गईं--बोलीं-- तो यह तुम हो?
मां काली ने कहा ~हां~ मैं दक्षिणेश्वर से आई हूं ।
दोनों थोड़ी देर तक बातचीत करते रहे।... 
इस बीच माँ ने देखा कि सांवली महिला की गर्दन 
एक ओर थोड़ी झुकी हुई है।
मां ने पूछा --तुम्हारा गला और सिर एक ओर झुका 
हुआ क्यों है?
माँ काली ने उत्तर दिया~~ 'गले में घाव के कारण'।
माँ बोली -- कैसी विचित्र बात है, ठाकुर के गले में घाव हुआ है, और तुम्हारे गले में भी।
मां काली ने कहा ~~~हां !
इस प्रकार माँ काली ने श्रीमाँ के मन में यह बात बिठा 
दी कि वे और श्रीरामकृष्णदेव एक तथा अभिन्न हैं ।
ठाकुर अपने इष्ट के साथ इस तरह जुड़े हुए थे कि 
उनके लिए मृत्यु भी ,अमरत्व प्रदान करने वाली हो 
गयी ।
जय काली ।
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Monday, 7 November 2022

ईश-कृपा

 

ईश-कृपा ;
स्वामी 'अतुलानंदजी' महाराज (१८७०-१९६६)रामकृष्ण मिशन के एक अमेरिकी सन्यासी थे। वे श्रीमां सारदादेवी के मंत्रशिष्य एवं स्वामी अभेदानंदजी महाराज द्वारा दीक्षित सन्यासी थे। उन्हें मिशन में "गुरूदास महाराज" के नाम से पुकारा जाता था। उन्होंने अपने जीवन के अंतिम 40 वर्ष भारत में बिताए थे। वे रामकृष्णदेव के सभी शिष्यों से मिले थे ,(केवल योगानंदजी एवं निरंजनानंद जी महाराज को छोड़कर।)
एक बार अतुलानंदजी महाराज बद्रीनाथ और केदारनाथ की यात्रा पर निकले । तब उनके साथ चार सन्यासी भी थे,जिनमें स्वामी प्रभवानंदजी शामिल थे । यह संस्मरण स्वामी प्रभवानंद जी ने लिखा है--हम सभी बद्रीनाथजी के मंदिर के सामने सीढ़ियों पर बैठे थे । तब मंदिर का दरवाजा बंद था। एक गौरवर्ण का 22/ 23 वर्ष का नौजवान ,भव्य पुजारी, हमारे पास आया और हमें अपने साथ चलने के लिए कहा ।उसने हमें मंदिर के एक अन्य द्वार से भीतर प्रवेश कराया। हमने भगवान के दर्शन किए ।उन्होंने पूछा~ क्या दर्शनों से संतुष्टि मिली ? हमारी सहमति के बाद फिर उन्होंने हमें मंदिर से बाहर कर ,भीतर से दरवाजा बंद कर लिया ।
हम वहाँ चार दिन के प्रवास पर थे न जाने किसकी प्रेरणा से मुख्य पुजारी ने हमें बुलवाया और पूछा कि साथ में जो सन्यासी हैं~ क्या वे विदेशी हैं? तत्कालीन नियमों के अनुसार उन्हें मंदिर में प्रवेश करने की इजाजत नहीं होगी। फिर भी उन्होंने हमारे रहने और भोजन की बड़ी अच्छी व्यवस्था की एवं प्रतिदिन मंदिर में आरतियों के समय हमें बाहर से आरती देखने का सुअवसर प्रदान किया। मंदिर में बहुत से पुजारी कार्यरत थे पर फिर कभी हमने उस पुजारी को नहीं देखा, जिसके कारण हमें भगवान के दर्शन का अवसर मिला था। क्या इस 'अमेरिकी सन्यासी 'को दर्शन देने के लिए भगवान ने स्वयं कुछ व्यवस्था की थी।
जय ठाकुर ।

Sunday, 6 November 2022

Anicca, anicca

Q: I find myself saying sometimes “Anicca, anicca” when I’m meditating. Is that good or not?

SNG: Don’t repeat it so often and make it a mantra because a mantra won’t help. But understand anicca, that everything is changing. If once in a while you say “Anicca” and then understand it, nothing wrong. But don’t repeat it so often.

Q: Okay. And then I have trouble up here [top of the head] and it keeps me from starting for a long time.

SNG: Then start with Anapana. Yes, whenever you find you can’t start from here that shows that the mind is a little dull, it can’t work. So work here [area of the nostrils], the mind becomes sharp and then start from here [top of the head].

Q: And do that often?

SNG: Yes, yes.

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Q: In the technique, you said we should go part by part, each by each. As I move faster and faster this last half an hour or so, I seem to have gone into the whole part and felt the whole part at one time.

SNG: Doesn’t matter. Tomorrow, the day after tomorrow you will be doing that. If you have started doing it now, nothing wrong. Do that, do that.

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Friday, 4 November 2022

Let all these thoughts be like background music

Q: I notice very often when I am practicing that I have other conversations going on, words, or I am hearing songs and music. But yet I still feel the sensations.

SNG: As if there are two minds. One mind is with the sensations and another mind is chattering, doing something.

Q: Yes.

SNG: It doesn’t matter. Don’t try to suppress whatever is coming in the mind, thoughts or fantasies or anything. But start giving more importance to the sensation.

Let all these thoughts be like background music. Then they will fade away automatically. If you give importance to them—either you want to get rid of them and try to push them out, or you start taking interest in them—they will become so predominant that the sensations will fade away. Always give importance to sensation; let there be any thought.

Q: Their presence doesn’t necessarily mean that there isn’t equanimity then?

SNG: No. All these thoughts won’t harm you, they will make sankhāras but they are sankhāras like a line drawn on the water. It can never go deep because you are with the sensations.

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अफजल खां का वध

20 नवम्बर, 1659 ई. - अफजल खां का वध :- बीजापुर की तरफ से अफजल खां को छत्रपति शिवाजी महाराज के खिलाफ भेजा गया। अफजल खां 10 हज़ार क...