ईश-कृपा ;
स्वामी 'अतुलानंदजी' महाराज (१८७०-१९६६)रामकृष्ण मिशन के एक अमेरिकी सन्यासी थे। वे श्रीमां सारदादेवी के मंत्रशिष्य एवं स्वामी अभेदानंदजी महाराज द्वारा दीक्षित सन्यासी थे। उन्हें मिशन में "गुरूदास महाराज" के नाम से पुकारा जाता था। उन्होंने अपने जीवन के अंतिम 40 वर्ष भारत में बिताए थे। वे रामकृष्णदेव के सभी शिष्यों से मिले थे ,(केवल योगानंदजी एवं निरंजनानंद जी महाराज को छोड़कर।)
एक बार अतुलानंदजी महाराज बद्रीनाथ और केदारनाथ की यात्रा पर निकले । तब उनके साथ चार सन्यासी भी थे,जिनमें स्वामी प्रभवानंदजी शामिल थे । यह संस्मरण स्वामी प्रभवानंद जी ने लिखा है--हम सभी बद्रीनाथजी के मंदिर के सामने सीढ़ियों पर बैठे थे । तब मंदिर का दरवाजा बंद था। एक गौरवर्ण का 22/ 23 वर्ष का नौजवान ,भव्य पुजारी, हमारे पास आया और हमें अपने साथ चलने के लिए कहा ।उसने हमें मंदिर के एक अन्य द्वार से भीतर प्रवेश कराया। हमने भगवान के दर्शन किए ।उन्होंने पूछा~ क्या दर्शनों से संतुष्टि मिली ? हमारी सहमति के बाद फिर उन्होंने हमें मंदिर से बाहर कर ,भीतर से दरवाजा बंद कर लिया ।
हम वहाँ चार दिन के प्रवास पर थे न जाने किसकी प्रेरणा से मुख्य पुजारी ने हमें बुलवाया और पूछा कि साथ में जो सन्यासी हैं~ क्या वे विदेशी हैं? तत्कालीन नियमों के अनुसार उन्हें मंदिर में प्रवेश करने की इजाजत नहीं होगी। फिर भी उन्होंने हमारे रहने और भोजन की बड़ी अच्छी व्यवस्था की एवं प्रतिदिन मंदिर में आरतियों के समय हमें बाहर से आरती देखने का सुअवसर प्रदान किया। मंदिर में बहुत से पुजारी कार्यरत थे पर फिर कभी हमने उस पुजारी को नहीं देखा, जिसके कारण हमें भगवान के दर्शन का अवसर मिला था। क्या इस 'अमेरिकी सन्यासी 'को दर्शन देने के लिए भगवान ने स्वयं कुछ व्यवस्था की थी।
जय ठाकुर ।
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