पेयं पेयं श्रवणपुटके रामनामाभिरामं,
ध्येयं ध्येयं मनसि सततं तारकं ब्रह्मरूपम्।
जल्पन् जल्पन् प्रकृतिविकृतौ प्राणिनां कर्णमूले,
वीथ्यां वीथ्यामटति जटिलः कोऽपि काशीनिवासी॥
(काशीखण्ड, स्कन्दपुराणम्)
peyaṃ peyaṃ śravaṇapuṭake rāmanāmābhirāmaṃ,
dhyeyaṃ dhyeyaṃ manasi satataṃ tārakaṃ brahmarūpam।
jalpan jalpan prakṛtivikṛtau prāṇināṃ karṇamūle,
vīthyāṃ vīthyāmaṭati jaṭilaḥ ko'pi kāśīnivāsī॥
(kāśīkhaṇḍa, skandapurāṇam)
एक जटाधारी नित्य काशीनिवासी योगी काशीके गली-गलीमें घुम-घुमकर वहाँ के मरणधर्मा जीवों को कहता रहता हैं -
'तुम अपने कानके दौनेमें मेरे मुखसे निकलने वालें इस अत्यन्त सुन्दर नाम "राम" को पीते रहो और हमेशा तारक ब्रह्म के स्वरूपका मन लगाकर ध्यान करते रहो! '
A Yogi with matted locks, who is an eternal resident of Kashi, has been moving around the lanes of Kashi and preaching to all living entities who by nature are subject to death -
'Drink this blissful name "Rama," which emanates from my mouth through your ears, and always meditate on the divine form of Taraka Brahman!'
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