**"प्रकृति से दूर होकर मनुष्य अपने आप से भी दूर हो गया है। हम कंक्रीट के जंगलों में जी रहे हैं, लेकिन भीतर का जंगल सूख गया है। पेड़, नदियाँ, पर्वत, पक्षी – ये सब ईश्वर की जीवित अभिव्यक्तियाँ हैं। जब तुम एक वृक्ष के नीचे शांत बैठते हो, वह वृक्ष तुम्हें कुछ कहता नहीं, लेकिन बहुत कुछ पहुँचा देता है।
प्रकृति मौन है, लेकिन उसका मौन ही सबसे गहरी भाषा है। फूल जब खिलता है, वह उपदेश नहीं देता – लेकिन उसकी सुगंध तुम्हारे अंतरतम को छू जाती है। यही ध्यान है, यही साधना है – प्रकृति के साथ एक हो जाना। कोई प्रयास नहीं, कोई तनाव नहीं – बस समर्पण।
प्रकृति तुम्हारे भीतर है, और बाहर भी। जब तुम भीतर से शांत होते हो, तब बाहर की हरियाली तुम्हारे भीतर उतरने लगती है। उस क्षण तुम ईश्वर के सबसे करीब होते हो – क्योंकि प्रकृति और ईश्वर अलग नहीं हैं।"**
~~~ *OSHO*
No comments:
Post a Comment