Saturday, 30 July 2022

सबको एक समान चीजें क्यों नहीं मिलतीं ?”

एकबार माँ पार्वती ने भगवान शिव से पूछाः 

“भगवन ! कई ऐसे लोग देखे गये जो थोड़ा सा ही प्रयत्न करते हैं और सहज में ही उनके पास अनायास ही रथ, वस्त्र-अलंकार आदि धन-वैभव मंडराता रहता है और ऐसे भी कई लोग हैं जो खूब प्रयास करते हैं फिर भी उन्हें नपा तुला मिलता है। ऐसे भी कई लोग हैं जो जिंदगीभर प्रयत्न करते हैं फिर भी वे ठनठनपाल ही रह जाते हैं। जब सृष्टिकर्ता एक ही है, सबका सुहृद है, सबका है तो सबको एक समान चीजें क्यों नहीं मिलतीं ?”
भगवान शिव ने कहाः “जिसने किसी भी मनुष्य जन्म में, फिर चाहे दो जन्म पहले, दस जन्म पहले या पचास जन्म पहले बिना माँगे जरूरतमन्दों को दिया होगा और मिली हुई संपत्ति का सदुपयोग किया होगा तो प्रकृति उसे अनायास सब देती है। जिन्होंने माँगने पर दिया होगा, नपा-तुला दिया होगा, उन्हें इस जन्म में मेहनत करने पर नपा-तुला मिलता है और तीसरे वे लोग हैं जिन्होंने पूर्वजन्म में न पंचयज्ञ किये, न अतिथि सत्कार किया, न गरीब-गुरबों के आँसू पोंछे, न गुरुजनों की सेवा की वरन् केवल अपने लिये ही संपत्ति का उपयोग किया और कंजूस बने रहे ऐसे लोग इस जन्म में मेहनत करते हुए भी ठीक से नहीं पा सकते हैं और प्रकृति उन्हें देने में कंजूसी करती है।”
तब माँ पार्वती कहती हैं- “ऐसे लोग भी तो हैं, प्रभु ! कि जिनके पास धन-संपदा तो अथाह है लेकिन वे प्राप्त संपदा का भोग नहीं कर सकते।”
शिवजी ने कहाः “जिन्होंने जीवनभर संग्रह किया लेकिन मरते समय उन्हें ऐसा लगा कि कुछ तो कर जायें ताकि भविष्य में मिले…. इस भाव से अनाप-शनाप दान कर दिया तो उन्हें दूसरे जन्म में धन-संपदा तो अनाप-शनाप मिलती है किन्तु वे उसका उपयोग नहीं कर सकते क्योंकि जो पहले भी किसी के काम नहीं आया, वह उनके काम में कैसे आ सकता है ?”
माँ पार्वतीः “हे ज्ञाननिधे ! ऐसे भी कई लोग हैं जिनके पास धन, विद्या, बाहुबल बहुत है फिर भी वे अपने कुटुम्बियों के, पत्नी के प्रिय नहीं दिखते और कुछ लोग ऐसे भी हैं जिनके पास धन-संपदा नहीं है, बाहुबल, सत्ता नहीं है, सौन्दर्य नहीं है, मुट्ठीभर हाड़पिंजर शरीर है फिर भी कुटुम्बियों का, पत्नी का बड़ा स्नेह उन्हें मिलता है।
शिवजीः “हे उमा ! जिन्होंने अपना बाल्यकाल, अपना पूर्वजन्म संयमपूर्वक एवं दूसरों को मान देकर गुजारा है उनको कुटुम्बी स्नेह करते हैं और वे गरीबी में भी सुखी जीते हैं !
ॐ नमः शिवाय

Friday, 29 July 2022

Shri Shivaji Raigad Smarak


In 1818 when British won Raigad fort, they stopped local people's manning the fort thereafter. The fort was unmanned for almost 60yrs thereafter. In this time span, dense forest grew on the fort making it hard to recognise structures.

In 1880, Mahatma Jyotirao Phule walked all the way from Pune to Raigad fort. He discovered the tomb of Chatrapati Shivaji maharaj (which was built by his son, Chhatrapati Sambhaji maharaj) hidden in the dense forest. He cleared the place and paid respect to the greatest king this soil has ever produced.

The original samadhi, built by Sambhaji maharaj, is that octagonal structure which resides below the dome shape structure.

Later in 1895, Shri Shivaji Fund committee was founded by Lokamanya Bal Gangadhar Tilak, a well known freedom fighter. He raised the fund through his committee and rebuilt the samadhi. This Shri Shivaji Fund committee was later renamed as Shri Shivaji Raigad Smarak Mandal.

Sri Ramakrishna offering Boon to Kalipada Ghosh

Sri Ramakrishna offering Boon to Kalipada Ghosh🔻

The following incident from Kalipada Ghosh’s life is to be repeatedly contemplated by the devotees of Sri Ramakrishna. This incident can also be meditated upon daily.

Kalipada Ghosh came as an immoral drunkard when he started visiting Sri Ramakrishna and was transformed by His golden touch. His faith in Sri Ramakrishna was matchless and firmly believed that Sri Ramakrishna is a God and has the capacity to grant him liberation. He was awaiting an opportune time to obtain the boon of liberation from Sri Ramakrishna Himself.

When the Master saw Kalipada He said that He had just been thinking of going to Calcutta. Kalipada told Him that his boat was at the landing ghat and that he would be glad to take Him there. Sri Ramakrishna immediately got ready and left with Latu (later Swami Adbhutananda) and Kalipada. As they got in the boat, however, Kalipada privately instructed the boatman to steer the boat to the middle of the river. Then Kalipada knelt down and clasped the Master’s feet, saying: ‘Sir, you are the saviour. Please save my life.’ ‘Oh, no, no!’ said Sri Ramakrishna. ‘Chant the name of the Lord. You will get liberation.’ Kalipada then said: ‘Sir, I am a wicked man and a drunkard. I do not even have time to chant the Lord’s name. You are the ocean of mercy. Kindly save a ruffian such as I, who is devoid of discipline and righteousness.’

Meanwhile, Kalipada firmly held on to the Master’s feet. Sri Ramakrishna could find no other way out of this predicament, so he asked Kalipada to stick out his tongue and then wrote a mantra on it. The Master said, ‘Henceforth your tongue will automatically repeat this mantra.’ But Kalipada was not happy. He said to the Master, ‘I don’t want this.’ ‘Then what do you want?’ asked Sri Ramakrishna. ‘When I leave this world,’ replied Kalipada, ‘I shall see darkness all around, and that terrible darkness will fill me with horror. My wife, children, and other relatives won’t be able to help me then. At that terrible time you will be my only saviour. You will have to take me, holding a light in your left hand and me with your right hand. I shall always be with you then. You will have to fulfil this prayer of mine.’ With His heart full of compassion, the Master said: ‘All right, all right. Your prayer will be fulfilled. My goodness! You have brought me to the middle of the Ganga and have created such a scene.’

Sri Ramakrishna had promised thrice in Swami Adbhutananda’s presence that at the time of Kalipada’s death He would take him, holding him by His right hand. Just as Kalipada breathed his last he raised his right hand. Swami Premananda was present at that time. Hearing the news of Kalipada’s death from Swami Premananda, Swami Adbhutananda said to some devotees: ‘Look, the Master came to Kalipada at his last moment. Holding Kalipada’s hand, the Master guided him away. Brother Baburam saw it clearly. Whatever the Master said to anyone is bound to be fulfilled.’

Wednesday, 27 July 2022

Surrender

One day the Holy Mother said: "However much of Japa you do, however much of work you perform all is for nothing. If Mahamaya does not open the way, is anything possible for anyone? Oh bound soul! Surrender, surrender! Then alone will She take compassion on you and leave your path open". 

Saying this, she told an incident in the Master's life at Kamarpukur: "One day in the month of Jyeshta, there was a heavy rain one evening. The whole field was covered with water. The Master was going along the main road near Dompada wading in the water. There, seeing that many fish had accumulated, people were beating them to death with sticks. One fish kept going round and round the Master's feet. Noticing it, he said: “Hey, do not kill this fish. It is going round my feet, surrendering itself to me. If anybody can, let him take this fish and set it free in the pond”. Then he himself set it free and came home and said: “Ah, if anyone could surrender in this manner, then alone can he find protection”". 

(“The Gospel of the Holy Mother”, Part 4: “Recorded by Swami Ishanananda”)

क्या भगवान हमारे द्वारा चढ़ाया गया भोग खाते हैं ?

क्या भगवान हमारे द्वारा चढ़ाया गया भोग खाते हैं ?
यदि खाते हैं, तो वह वस्तु समाप्त क्यों नहीं हो जाती ?
और यदि नहीं खाते हैं, तो भोग लगाने का क्या लाभ ?

एक लड़के ने पाठ के बीच में अपने गुरु से यह प्रश्न किया। 
गुरु ने तत्काल कोई उत्तर नहीं दिया। 
वे पूर्ववत् पाठ पढ़ाते रहे
उस दिन उन्होंने पाठ के अन्त में एक श्लोक पढ़ाया: 

 पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते ।
  पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ॥

पाठ पूरा होने के बाद गुरु ने शिष्यों से कहा कि वे पुस्तक देखकर श्लोक कंठस्थ कर लें।
एक घंटे बाद गुरु ने प्रश्न करने वाले शिष्य से पूछा कि उसे श्लोक कंठस्थ हुआ कि नहीं ? उस शिष्य ने पूरा श्लोक शुद्ध-शुद्ध गुरु को सुना दिया। 
फिर भी गुरु ने सिर 'नहीं' में हिलाया, तो शिष्य ने कहा कि" वे चाहें, तो पुस्तक देख लें; श्लोक बिल्कुल शुद्ध है।”

गुरु ने पुस्तक देखते हुए कहा“ श्लोक तो पुस्तक में ही है, तो तुम्हारे दिमाग में कैसे चला गया? शिष्य कुछ भी उत्तर नहीं दे पाया।
तब गुरु ने कहा “ पुस्तक में जो श्लोक है, वह स्थूल रूप में है। तुमने जब श्लोक पढ़ा, तो वह सूक्ष्म रूप में तुम्हारे दिमाग में प्रवेश कर गया,
उसी सूक्ष्म रूप में वह तुम्हारे मस्तिष्क में रहता है। और जब तुमने इसको पढ़कर कंठस्थ कर लिया, तब भी पुस्तक के स्थूल रूप के श्लोक में कोई कमी नहीं आई। 

इसी प्रकार पूरे विश्व में व्याप्त परमात्मा हमारे द्वारा चढ़ाए गए निवेदन को सूक्ष्म रूप में ग्रहण करते हैं,
और इससे स्थूल रूप के वस्तु में कोई कमी नहीं होती। उसी को हम *प्रसाद* के रूप में  ग्रहण करते हैं।

शिष्य को उसके प्रश्न का उत्तर मिल गया।

नारायण 🙏🏻

Sunday, 24 July 2022

कितना बड़ा मजाक किया गया भारत वर्ष के इतिहास के साथ

कितना बड़ा मजाक किया गया भारत वर्ष के इतिहास के साथ......
साभार एक लेखक की यात्रा गाथा से

#ज्वालादेवीजी

एक बार मेरा मित्र अपने दोस्तों के साथ हिमाचल के पालमपुर से होकर ट्रेकिंग पर जा रहे थे, मार्ग में माँ भगवती ज्वाला जी का प्रसिद्ध मंदिर आता है, जोकि कांगड़ा नगर से 30 किलो मीटर दूर एक नदी के तट पर है। हमने सोचा चलो माँ भगवती के दर्शन करते हुए चलते हैं ...

मंदिर अति प्राचीन  और हम हिन्दुओं की 51 शक्ति पीठ में से एक है। मंदिर में कोई मूर्ति नहीं है। एक बड़े से हाल जैसे स्थान पर भूमि से अलग-अलग स्थानों पर 9 स्थानों पर ज्वाला प्रकट हो रही है। उसे ही माँ का स्वरूप मान कर हम हिन्दू उनकी पूजा करते हैं ...

वैसे तो अनेक कहानियाँ हैं इस मंदिर के इतिहास और मान्यता पर, किन्तु मंदिर के सूचना पट पर एक लिखी हुई सूचना को पढने के बाद मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ ...

उस पर लिखा है कि एक बार अकबर इस मंदिर के दर्शन करने आया था , उसने मंदिर में जलती ज्वाला को बुझाने के लिए अपने लोगों को लगाया, किन्तु ज्य्वाला जब नहीं बुझी तो माता के चमत्कार से प्रभावित होकर अकबर नंगे पैर माँ के दर्शन करने आया, और माता पर सोने का छत्र चढाया, साथ ही मंदिर को कई सौ बीघा भूमि दान दी।

मुझे उस लिखित सुचना पर विश्वास नहीं हो रहा था, मैंने वहां के पुजारियों, और अन्य अधिकारियों से इस विषय पर बात की किन्तु सभी ने एक सा ही उत्तर दिया की ये सब सत्य लिखा है ..

पर मुझे भली भांति ज्ञात था कि अकबर मूर्ति भंजक था, उसने हिन्दू धर्म को मिटाने के अनेक प्रयास किये थे। जो इतिहास में लिखे हैं। वो क्रूर इस्लामी जिहादी किसी हिन्दू आस्था पर कभी श्रद्धा नहीं दिखा सकता था...

जो अकबर अपने अहंकार और इस्लामी जिहादी फितूर के कारण मेवाड़ को तबाह करने के मनसूबे रखता हों ...!  जो एक ही दिन में चित्तोड़ो दुर्ग के पास 30 हजार साधारण नागरिकों को केवल हिन्दू होने कारण क़त्ल करवा सकता है वो किसी हिन्दू आस्था पर सोने का छत्र चढ़ाएगा .. ये संभव ही नहीं ...!

मैंने अपनी जिज्ञासा की पूर्ति के लिए प्रयास जारी रखे। मेरे मित्र थके हुए थे, इसलिए वे आगे पालमपुर होटल चले गए, और मैं मंदिर में सत्य की खोज पर निकल पड़ा ..!

बहुत प्रयास करने पर भी कोई सूत्र हाथ नहीं आ रहा था, तभी वहां सुरक्षा में तैनात एक हिमाचल के क्षत्रिय जोकि भारतीय सेना से सेवा निवर्त भाई है। उन्होंने मेरी जिज्ञासा को समझा और मुझे लेकर परिसर के पास अपने निवास पर आये। मुझे जल पान करवाया, और कहा  क्यूंकि मुझे अधिक कुछ ज्ञात नहीं है, किन्तु मैं तुमको एक विद्वान का पता देता हूँ। उनसे मिलो, अवश्य ही कुछ न कुछ सत्य पता चल जायेगा।

उन्होंने मुझे एक पता दिया, जो पालमपुर के पास एक गाँव का है। वहां रामशरण भारद्वाज जी से मिलना है। 

मैं किसी तरह से उनके गाँव पहुंचा , तब तक रात्रि के 8 बज चुके थे , बरसात से मैं भीग गया था ..!

भारद्वाज जी ने मुझे देख कर पहले तो समझा कि कोई बालक है जो किसी सहायता के लिए आया होगा। किन्तु मैंने जब उनसे ज्वाला देवी मंदिर पर लिखे सुचना पट्ट के विषय में जानकरी चाही, तो वे पहले तो कुछ असहज दिखे, किन्तु मुझ से दो प्रश्न करने के बाद मुझे उन्होंने गंभीरता से लिया और अंदर बुला लिया। कपडे बदलने के लिए दिए, फिर दूध और गुड देकर मेरी कंपकंपी को बंद करवाया। फिर हम चर्चा पर आये ...!

भारद्वाज जी सेवा निवृत प्रोफ़ेसर है। उन्होंने इतिहास पर कई थीसिस लिखी हैं। 

मुझे बताया की,, ये सत्य है कि नूरपुर और चम्बे पर हमला करने के लिए अकबर ज्वाला मंदिर पर आया था। और ये भी सत्य है कि मंदिर की ज्योति को बुझाने के प्रयास भी किये थे, किन्तु जब पानी की नहर लाकर भी अकबर ज्योति को बुझा नहीं पाया, तब मंदिर का विध्वंस करवा कर चला गया था ...!

ज्वाला स्थल पर बने मंदिर को नष्ट करवाया , वहां के सभी सेवादार और पुजारी आदि सबको मृत्यु दंड देकर मार दिया , ज्योति स्थल को बड़े बड़े शिलाओं से  ढक कर चला गया था ...!

बाद में चंबा के राजा संसार चंद ने मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया था और महाराजा रणजीत सिंह ने मंदिर पर सोने का छत्र लगवाया था,, साथ ही महाराजा के पुत्र शेरसिंह ने मंदिर के मुख्य द्वार को चांदी के द्वारों से सजाया था ..?

मैंने जब मंदिर परिसर में लिखे सूचना पर उनका ध्यान दिलाया तो प्रोफ़ेसर साहब ने कहा कि ये सूचना हिन्दू समाज की मूर्खता और इस्लामी जिहादी कोम की चालाकी दिखाता एक झूठ है ..?

सरकारी आदेश से ये सूचना इसलिए लिखवाई गई है जिससे हिन्दू मुस्लिम में भाई चारा बढे और अकबर को महान बनाया जा सकें ...!

हमारे देश के वामपंथी गद्दार इतिहास कारों ने हमसे किस तरह एक एजेंडे के तहत झूठ बोला है, आप समझ गए होंगे।
विकास सनातनी राजपूत की कलम‌ से

हनुमान चालीसा हिंदी में अनुवाद

*पहली बार हनुमान चालीसा हिंदी में अनुवाद कर भेज रहा हूँ*
            😊🙏🏻🚩


*श्रीगुरु चरन सरोज रज*
मेरे गुरु/अभिभावक के चरणकमलों में

*निज मन मुकुर सुधारि।* 
मैं अपने दिल के दर्पण को शुद्ध करता हूँ

*बरनउँ रघुबर बिमल जसु* 
मैं बेदाग राम की कहानी का वर्णन करता हूं

*जो दायकु फल चारि॥* 
जो चार फल देते है (4 पुरुषार्थ: इच्छा, समृद्धि, धार्मिकता, मुक्ति)

 *बुद्धिहीन तनु जानिकै* 
खुद को कमजोर और नासमझ समझकर

*सुमिरौं पवनकुमार।* 
मैं पवन पुत्र (हनुमान) का चिंतन करता हूं

*बल बुद्धिविद्या देहु मोहिं* 
शक्ति, ज्ञान और सभ्यता प्रदान करने के लिए

*हरहु कलेश विकार ॥* 
और जीवन के सभी दुखों को दूर करने के लिए।

*जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।* 
मैं ज्ञान और गुणों के गहरे समुद्र, भगवान हनुमान की महिमा करता हूं

*जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥* 
मैं बंदर आदमी "वानर" की महिमा करता हूं, जो तीनों लोकों (पृथ्वी, वातावरण और परे) को रोशन करते है।

*राम दूत अतुलित बल धामा।* 
मैं भगवान राम के वफादार दूत की महिमा करता हूं,

*अंजनि पुत्र पवनसुत नामा॥* 
जिसे अंजना (अंजनीपुत्र) और पवन के पुत्र (पवनसुता) के पुत्र के रूप में भी जाना जाता है

*महाबीर बिक्रम बजरंगी।* 
आप प्रतिष्ठित योद्धा हैं, साहसी हैं और "इंद्र के वज्र" के रूप में ताकत रखते हैं

*कुमति निवार सुमति के संगी॥* 
आप नीच मन का नाश करते हैं और उत्तम बुद्धि से मित्रता करते हैं

*कंचन बरन बिराज सुबेसा।* 
सोने के रंग का होने के कारण वह अपने सुंदर रूप में रहते है

*कानन कुंडल कुंचित केसा॥* 
आप झुमके और घुंघराले बालों को सजाते हैं।

*हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै।*  आप एक हाथ में "वज्र" और दूसरे में झंडा धारण करते हैं

*काँधे मूँज जनेऊ साजै॥* 
आप अपने कंधे पर "मुंजा घास" द्वारा तैयार किया गया पवित्र धागा "जनेऊ" सजाते हैं

*शंकर सुवन केसरी नंदन।* 
आप केसरी के पुत्र शिव की प्रसन्नता हैं

*तेज प्रताप महा जग बंदन॥* 
आपके पास एक राजसी आभा है और आपकी पूरी दुनिया द्वारा प्रशंसा की जाता है

*बिद्यावान गुनी अति चातुर।* 
आप अठारह प्रकार की विद्याओं के प्रशंसनीय धाम हैं

*राम काज करिबे को आतुर॥* 
आप हमेशा भगवान राम की सेवा के लिए तैयार हैं

*प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।* 
आप भगवान राम की किंवदंतियों को सुनना पसंद करते हैं

*राम लखन सीता मन बसिया॥* 
आप राम, उनकी पत्नी सीता और उनके छोटे भाई लक्ष्मण के हृदय में निवास करते हैं।

*सूक्ष्म रूप धरी सियहिं दिखावा।* 
आपने लघु रूप धारण कर सीता को खोजा

*बिकट रूप धरि लंक जरावा॥* 
और आपने सोने की बनी लंका को स्थूल रूप में प्रज्वलित करके आग लगा दी

*भीम रूप धरि असुर सँहारे।* 
आपने भयानक रूप धारण करके सभी राक्षसों को नष्ट कर दिया

*रामचन्द्र के काज सँवारे॥* 
और इसी तरह आपने श्री राम के सभी कार्य किए।

*लाय सँजीवनि लखन जियाए।* 
आपने द्रोणागिरी पर्वत को हिमालय से लाये, जिसमें संजीवनी लंका थी और लक्ष्मण को बचाया।

*श्रीरघुबीर हरषि उर लाए॥* 
इस कार्य से प्रसन्न होकर श्री राम ने आपको गले लगा लिया।

*रघुपति कीन्हीं बहुत बड़ाई।* 
राम ने कई बार तालियाँ बजाईं।

*तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई॥* 
राम ने तो यहां तक ​​कह दिया कि तुम उन्हें उनके भाई भरत के समान प्रिय हो।

*सहस बदन तुम्हरो जस गावैं।* 
हजारों लोग आपको श्रद्धांजलि देंगे

*अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं॥* 
यह कह रहा है; राम ने फिर गले लगाया

*सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।* 
ब्रम्हा और मुनिष जैसे कई संत:

*नारद सारद सहित अहीसा॥* 
नारद और शारद ने हनुमान को आशीर्वाद दिया है।

*जम कुबेर दिक्पाल जहाँ ते।* 
यम कुबेर और दिकपाल जहाँ हैं

*कबी कोबिद कहि सकैं कहाँ ते॥* 
कवि और लेखक, कोई भी हनुमान की महिमा को स्पष्ट नहीं कर सका।

*तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा।* 
आप सुग्रीव के प्रति परम उदार थे

*राम मिलाय राजपद दीन्हा॥* 
राम के साथ उनकी मित्रता की और उन्हें अपना राज्य किष्किंधा प्राप्त किया

*तुम्हरो मन्त्र बिभीषन माना।* 
विभीषण ने भी आपके मंत्र का समर्थन किया, परिणामस्वरूप, लंका के राजा बन गए

*लंकेश्वर भए सब जग जाना॥* 
लंका का पूर्व राजा रावण आपसे डरता था।

*जुग सहस्र जोजन पर भानू।* 
सूर्य, जो पृथ्वी से हजारों की दूरी पर है

*लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥* 
आपने इसे मीठा वाला फल मानकर निगल लिया।

*प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।* 
अपने मुंह में अंगूठी रखकर

*जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं॥*
यह आश्चर्यजनक नहीं है कि आपने समुद्र को छलांग लगा दी

*दुर्गम काज जगत के जेते ।* 
दुनिया के अस्पष्ट कार्य

*सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥* 
आपकी कृपा से प्राप्त हुए

*राम दुआरे तुम रखवारे।* 
आप राम के दरबार के द्वारपाल और संरक्षक हैं

*होत न आज्ञा बिनु पैसारे॥* 
आपकी सहमति के बिना कोई भी उसके दरबार में प्रवेश नहीं कर सकता

*सब सुख लहै तुम्हारी शरना।* 
आपके शरणागत को सभी सुख मिलते हैं

*तुम रक्षक काहू को डर ना॥* 
आप जिसकी रक्षा करते हैं, उसका कोई भय नहीं रह सकता

*आपन तेज सम्हारो आपै ।*
एक बार जब आप अपनी शक्तियों का स्मरण करते हैं

*तीनौं लोक हाँक ते काँपे॥* 
तीनों दुनिया डर से कांपने लगती हैं

*भूत पिशाच निकट नहिं आवै।* 
बुरी आत्माएं परेशान नहीं कर सकतीं

*महाबीर जब नाम सुनावै॥* 
जब कोई आपका भजन गाता है और आपको याद करता है।

*नासै रोग हरै सब पीरा।* 
आप सभी बीमारियों को नष्ट करते हैं और सभी निराशाओं को दूर करते हैं

*जपत निरंतर हनुमत बीरा॥* 
जो नियमित रूप से आपको याद करते हैं।

*सब पर राम तपस्वी राजा।* 
हालांकि राम सर्वोच्च हैं

*तिन के काज सकल तुम साजा॥*
आप उसके सभी कार्यों को पूरा करते हैं।

*और मनोरथ जो कोई लावै।* 
अगर किसी को कभी कुछ चाहिए

*तासु अमित जीवन फल पावै॥* 
आप उसकी इच्छाओं को कई गुना पूरा करते हैं

*साधु संत के तुम रखवारे।* 
आप संत हैं और रक्षक का ध्यान करते हैं

*असुर निकंदन राम दुलारे॥* 
आप राक्षसों का वध करते हैं और राम को प्रिय हैं

*अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता।* 
आपके पास आठ अलौकिक शक्तियां और नौ खजाने हैं

*अस बर दीन्ह जानकी माता॥* 
और यह आपको माता सीता द्वारा प्रदान किया गया है।

*तुम्हरे भजन राम को पावै।* 
जो कोई भी आपके भजन गाता है, वह सीधे सर्वोच्च व्यक्ति, राम का अधिकारी होता है

*जनम जनम के दुख बिसरावै॥* 
और जीवन की सभी प्रतिकूलताओं और नकारात्मकताओं से छुटकारा दिलाता है।

*अंत काल रघुबर पुर जाई।* 
जो हमारा भक्त है, वह अपने शरीर की मृत्यु के बाद परमात्मा के धाम में जाता है

*जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई॥* 
और उसके बाद जब उनका पुनर्जन्म होता है, तो वे हमेशा भगवान के भक्त के रूप में जाने जाते हैं

*और देवता चित्त न धरई।* 
जो किसी दूसरे भगवान से प्रार्थना नहीं करता

*हनुमत सेइ सर्व सुख करई॥* 
लेकिन केवल आपको, यहां तक ​​​​कि वह जीवन के सभी खजाने को प्राप्त करता है (आमतौर पर यह कहा जाता है कि हर भगवान कुछ न कुछ प्रदान करता है)

*संकट कटै मिटै सब पीरा।* 
सभी रोग दूर हो जाते हैं और सभी विपत्तियों से छुटकारा मिल जाता है

*जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥* 
एक बार जब कोई आपका भक्त बन जाए और आपको याद करे।

*जय जय जय हनुमान गोसाईं।* 
मैं विजयी, सभी इंद्रियों के स्वामी, हनुमान की प्रशंसा करता हूं

*कृपा करहु गुरुदेव की नाईं॥* 
जैसे गुरु अपने शिष्य पर अपनी कृपा बरसाते हैं, वैसे ही मुझे अपने आशीर्वाद से नहलाएं

*जो शत बार पाठ कर कोई।* 
जो इस स्तोत्र का 100 बार पाठ करता है

*छूटहि बंदि महा सुख होई॥* 
उसके सारे कष्ट दूर हो जाते हैं और उसे जीवन का सारा खजाना मिल जाता है।

*जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।* 
जो कभी इस चालीसा का पाठ करता है

*होय सिद्धि साखी गौरीसा॥* 
सभी शक्तियों को प्राप्त करता है और भगवान शिव इसके साक्षी हैं।

*तुलसीदास सदा हरि चेरा।* 
तुलसीदास, जो इस चालीसा के रचयिता हैं, सदैव आपके शिष्य रहेंगे

*कीजै नाथ हृदय महँ डेरा॥* 
और वह हमेशा अपनी आत्मा में विराजमान प्रभु से प्रार्थना करता है।

*पवनतनय संकट हरन मंगल मूरति रूप।* 
मैं पवन पुत्र का आह्वान करता हूं, जो मेरे जीवन के सभी दुखों को दूर करने के लिए एक शुभ रूप है

*राम लखन सीता सहित हृदय बसहु सुर भूप॥* 
मैं आपसे प्रार्थना करता हूं कि मेरे हृदय में राम, सीता और लक्ष्मण के साथ निवास करें।

*जय जय सियाराम🙏🏻🚩*
*इतिश्री हनुमान जी की जय🙏🏻🚩*

Tuesday, 19 July 2022

कृपामयी

कृपामयी,
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वाराणसी से श्रीमाँ सब लोगों के साथ ईसवी सन 1913 के जनवरी की 17 वीं तारीख को कलकत्ता आयीं और लगभग एक मास तक वहां रहीं। उनके पास दीक्षा लेने के लिए बहुत से भक्त आते रहते थे।.... 
एक दिन बागबाजार में भक्तगण उनकी अयाचित कृपा
के संबंध में चर्चा कर रहे थे,---"श्रीमाँ बिना विचार किए कितने लोगों को दीक्षा दे रही हैं और उनके 'पाप-ताप' आप ले रही हैं।... 
योगीन-माँ ने हंसते-हंसते श्रीमाँ की ओर देखकर कुछ ऊँची आवाज में कहा--"मां, हम लोगों को भले ही कितना भी प्यार करें ,पर ठाकुर के समान नहीं कर सकतीं,लड़कों के लिए ठाकुर की कैसी व्याकुलता, कैसा प्यार देखा है मैंने ,व्यक्त नहीं कर सकती!"...
सुनकर श्रीमाँ कुछ हंसते हुए बोली --"सो नहीं होगा? उन्होंने तो सब चुन-चुन कर शिष्य बनाएं और फिर उस पर यहां-वहां स्पर्श करके उन लोगों में अपनी मंत्रशक्ति द्वारा ,
आध्यात्मिकता भर दी।और मेरे लिए ? मेरे पास-- तो उन्होंने एकदम चीटियों की जमात ठेल दी है!"...

'मातृ-सदन' में एक ब्रह्मचारी सेवक ने श्रीमाँ से पूछा था,
"मां ! यह जो इतने लोग मंत्र लेते हैं ,इनको क्या मिलता है? भला बाहरी दृष्टि से तो ऐसा दिखता है कि दीक्षा लेने से पहले व्यक्ति जैसा था ,दीक्षा के बाद भी वैसा ही है।"
श्रीमाँ ने उत्तर दिया, " मंत्र के माध्यम से शक्ति संचारित होती है। गुरु की शक्ति शिष्य में आती है और शिष्य के पाप-ताप गुरु में आते हैं । इसीलिए मंत्र देने से पाप, अपने ऊपर लेने के कारण, देह में इतनी व्याधियों होती हैं । गुरु होना बड़ा कठिन है--शिष्य के पाप लेने पड़ते हैं।"...

श्रीमाँ दूरस्थ-भक्तों पर भी अपनी कृपा करती थीं। सुदूर 'बरिशाल' का एक भक्त असाध्य यक्ष्मा-रोग से ग्रसित हो गया। उसने श्रीमाँ को चिट्ठी लिखी ; "मां अब मैं नहीं बचूंगा ‌। एकमात्र इच्छा है तुम्हें देखने की, पर मैं तो आ न सकूंगा । अतः, तुम ही आ जाओ, मां !अपने इस बच्चे को देख जाओ।" ....
चिट्ठी पाकर श्रीमाँ बहुत व्यग्र हो उठीं‌। उन्होंने पत्र के जवाब में लिखवाया ; "बेटा ! डर नहीं है । तुम्हारी बीमारी ठीक हो जाएगी। इतनी दूर जाना मेरे लिए संभव नहीं है । मैं अपना फोटो भेजती हूं उसी को देखना और 'उद्बोधन' पढ़ना।" 
वह भक्त श्रीमाँ के चित्र को अपने सिरहाने पर रखकर अंतिम सांस तक आश्वस्ति पाता रहा।...
ॐ,

श्री हनुमानजी के 10 रहस्य

श्री हनुमानजी के 10 रहस्य ......
हिन्दुओं के प्रमुख देवता हनुमानजी के बारे में कई रहस्य जो अभी तक छिपे हुए हैं। शास्त्रों अनुसार हनुमानजी इस धरती पर एक कल्प तक सशरीर रहेंगे। 

1. हनुमानजी का जन्म स्थान 

कर्नाटक के कोपल जिले में स्थित हम्पी के निकट बसे हुए ग्राम अनेगुंदी को रामायणकालीन किष्किंधा मानते हैं। तुंगभद्रा नदी को पार करने पर अनेगुंदी जाते समय मार्ग में पंपा सरोवर आता है। यहां स्थित एक पर्वत में शबरी गुफा है जिसके निकट शबरी के गुरु मतंग ऋषि के नाम पर प्रसिद्ध 'मतंगवन' था।

हम्पी में ऋष्यमूक के राम मंदिर के पास स्थित पहाड़ी आज भी मतंग पर्वत के नाम से जानी जाती है। कहते हैं कि मतंग ऋषि के आश्रम में ही हनुमानजी का जन्म हआ था। श्रीराम के जन्म के पूर्व हनुमानजी का जन्म हुआ था। प्रभु श्रीराम का जन्म 5114 ईसा पूर्व अयोध्या में हुआ था। हनुमान का जन्म चैत्र मास की शुक्ल पूर्णिमा के दिन हुआ था।

2.कल्प के अंत तक सशरीर रहेंगे हनुमानजी 

इंद्र से उन्हें इच्छा मृत्यु का वरदान मिला। श्रीराम के वरदान अनुसार कल्प का अंत होने पर उन्हें उनके सायुज्य की प्राप्ति होगी। सीता माता के वरदान अनुसार वे चिरजीवी रहेंगे। इसी वरदान के चलते द्वापर युग में हनुमानजी भीम और अर्जुन की परीक्षा लेते हैं। कलियुग में वे तुलसीदासजी को दर्शन देते हैं।

ये वचन हनुमानजी ने ही तुलसीदासजी से कहे थे-
'चित्रकूट के घाट पै, भई संतन के भीर।
तुलसीदास चंदन घिसै, तिलक देत रघुबीर।।'
श्रीमद् भागवत अनुसार हनुमानजी
कलियुग में गंधमादन पर्वत पर निवास करते हैं।

3.कपि नामक वानर 

हनुमानजी का जन्म कपि नामक वानर जाति में हुआ था। रामायणादि ग्रंथों में हनुमानजी और उनके सजातीय बांधव सुग्रीव अंगदादि के नाम के साथ 'वानर, कपि, शाखामृग, प्लवंगम' आदि विशेषण प्रयुक्त किए गए। उनकी पुच्छ, लांगूल, बाल्धी और लाम से लंकादहन इसका प्रमाण है कि वे वानर थे।
रामायण में वाल्मीकिजी ने जहां उन्हें विशिष्ट पंडित, राजनीति में धुरंधर और वीर-शिरोमणि प्रकट किया है, वहीं उनको लोमश ओर पुच्छधारी भी शतश: प्रमाणों में व्यक्त किया है। अत: सिद्ध होता है कि वे जाति से वानर थे।

4. हनुमान परिवार 

हनुमानजी की माता का अंजनी पूर्वजन्म में पुंजिकस्थला नामक अप्सरा थीं। उनके पिता का नाम कपिराज केसरी था। ब्रह्मांडपुराण अनुसार हनुमानजी सबसे बड़े भाई हैं। उनके बाद मतिमान, श्रुतिमान, केतुमान, गतिमान, धृतिमान थे।

कहते हैं कि जब वर्षों तक केसरी से अंजना को कोई पुत्र नहीं हुआ तो पवनदेव के आशिर्वाद से उन्हें पुत्र प्राप्त हुआ। इसीलिए हनुमानजी को पवनपुत्र भी कहते हैं। कुंति पुत्र भीम भी पवनपुत्र हैं। हनुमानजी रुद्रावतार हैं। 

पराशर संहिता अनुसार सूर्यदेव की शिक्षा देने की शर्त अनुसार हनुमानजी को सुवर्चला नामक स्त्री से विवाह करना पड़ा था।

5. इन बाधाओं से बचाते हैं हनुमानजी 

रोग और शोक, भूत-पिशाच, शनि, राहु-केतु और अन्य ग्रह बाधा, कोर्ट-कचहरी-जेल बंधन, मारण-सम्मोहन-उच्चाटन, घटना-दुर्घटना से बचना, मंगल दोष, पितृदोष, कर्ज, संताप, बेरोजगारी, तनाव या चिंता, शत्रु बाधा, मायावी जाल आदि से हनुमानजी अपने भक्तों की रक्षा करते हैं।

6. हनुमानजी के पराक्रम 

हनुमान सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञ और सर्वत्र हैं। बचपन में उन्होंने सूर्य को निकल लिया था। एक ही छलांक में वे समुद्र लांघ गए थे। उन्होंने समुद्र में राक्षसी माया का वध किया। लंका में घुसते ही उन्होंने लंकिनी और अन्य राक्षसों के वध कर दिया।

अशोक वाटिका को उजाड़कर अक्षय कुमार का वध कर दिया। जब उनकी पूछ में आग लगाई गई तो उन्हों लंका जला दी। उन्होंने सीता को अंगुठी दी, विभिषण को राम से मिलाया। हिमालय से एक पहाड़ उठाकर ले आए और लक्ष्मण के प्राणों की रक्षा की।

इस बीच उन्होंने कालनेमि राक्षस का वध कर दिया। पाताल लोक में जाकर राम-लक्ष्मण को छुड़ाया और अहिरावण का वध किया। उन्होंने सत्यभामा, गरूढ़, सुदर्शन, भीम और अर्जुन का घमंड चूर चूर कर दिया था। 
हनुमानजी के ऐसे सैंकड़ों पराक्रम हैं।

7.हनुमाजी पर लिखे गए ग्रंथ 

तुलसीदासजी ने हनुमान चालीसा, बजरंग बाण, हनुमान बहुक, हनुमान साठिका, संकटमोचन हनुमानाष्टक, आदि अनेक स्तोत्र लिखे। तुलसीदासजी के पहले भी कई संतों और साधुओं ने हनुमानजी की श्रद्धा में स्तुति लिखी है।

इंद्रा‍दि देवताओं के बाद हनुमानजी पर विभीषण ने हनुमान वडवानल स्तोत्र की रचना की। समर्थ रामदास द्वारा मारुती स्तोत्र रचा गया। आनं‍द रामायण में हनुमान स्तुति एवं उनके द्वादश नाम मिलते हैं। इसके अलावा कालांतर में उन पर हजारों वंदना, प्रार्थना, स्त्रोत, स्तुति, मंत्र, भजन लिखे गए हैं। गुरु गोरखनाथ ने उन पर साबर मं‍त्रों की रचना की है।

8. माता जगदम्बा के सेवक हनुमानजी 

रामभक्त हनुमानजी माता जगदम्बा के सेवक भी हैं। हनुमानजी माता के आगे-आगे चलते हैं और भैरवजी पीछे-पीछे। माता के देशभर में जितने भी मंदिर है वहां उनके आसपास हनुमानजी और भैरव के मंदिर जरूर होते हैं। हनुमानजी की खड़ी मुद्रा में और भैरवजी की मुंड मुद्रा में प्रतिमा होती है। कुछ लोग उनकी यह कहानी माता वैष्णोदेवी से जोड़कर देखते हैं।

9. सर्वशक्तिमान हनुमानजी 

हनुमानजी के पास कई वरदानी शक्तियां थीं लेकिन फिर भी वे बगैर वरदानी शक्तियों के भी शक्तिशाली थे। ब्रह्मदेव ने हनुमानजी को तीन वरदान दिए थे, जिनमें उन पर ब्रह्मास्त्र बेअसर होना भी शामिल था, जो अशोकवाटिका में काम आया।

सभी देवताओं के पास अपनी अपनी शक्तियां हैं। जैसे विष्णु के पास लक्ष्मी, महेश के पास पार्वती और ब्रह्मा के पास सरस्वती। हनुमानजी के पास खुद की शक्ति है। इस ब्रह्मांड में ईश्वर के बाद यदि कोई एक शक्ति है तो वह है हनुमानजी। महावीर विक्रम बजरंगबली के समक्ष किसी भी प्रकार की मायावी शक्ति ठहर नहीं सकती।

10. इन्होंने देखा हनुमानजी को 

13वीं शताब्दी में माध्वाचार्य, 16वीं शताब्दी में तुलसीदास, 17वीं शताब्दी में रामदास, राघवेन्द्र स्वामी और 20वीं शताब्दी में स्वामी रामदास हनुमान को देखने का दावा करते हैं। हनुमानजी त्रेता में श्रीराम, द्वापर में श्रीकृष्ण और अर्जुन और कलिकाल में रामभक्तों की सहायता करते हैं।

Sunday, 17 July 2022

हमेशा अच्छे कर्म करने चाहिए।

एक स्त्री थी जिसे 20 साल तक संतान नहीं हुई। कर्म संजोग से 20 वर्ष के बाद वो गर्भवती हुई और उसे पुत्र संतान की प्राप्ति हुई, किन्तु दुर्भाग्यवश 20दिन में वो संतान मृत्यु को प्राप्त हो गयी।

वो स्त्री हद से ज्यादा रोई और उस मृत बच्चे का शव लेकर एक सिद्ध महात्मा के पास गई।महात्मा से रोकर कहने लगी मुझे मेरा बच्चा बस एक बार जीवित करके दीजिये, मात्र एक बार मैं उसके मुख से " माँ " शब्द सुनना चाहती हूँ।

स्त्री के बहुत जिद करने पर महात्मा ने 2 मिनट के लिए उस बच्चे की आत्मा को बुलाया।

तब उस स्त्री ने उस आत्मा से कहा - तुम मुझे क्यों छोड़कर चले गए? मैं तुमसे सिर्फ एक बार ' माँ ' शब्द सुनना चाहती हूँ। तभी उस आत्मा ने कहा - कौन माँ, कैसी माँ !! मैं तो तुमसे कर्मों का हिसाब-किताब करने आया था। स्त्री ने पूछा कैसा हिसाब!

आत्मा ने बताया पिछले जन्म में तुम मेरी सौतन थी, मेरे आँखों के सामने मेरे पति को ले गई; मैं बहुत रोई तुमसे अपना पति मांगा पर तुमने एक न सुनी। तब मैं रो रही थी और आज तुम रो रही हो! बस मेरा तुम्हारे साथ जो कर्मों का हिसाब था, वो मैंने पूरा किया और मर गया। इतना कहकर आत्मा चली गयी।

उस स्त्री को झटका लगा। उसे महात्मा ने समझाया - देखो मैने कहा था न कि ये सब रिश्तेदार माँ, पिता, भाई, बहन सब कर्मों के कारण जुड़े हुए हैं।

हम सब कर्मों का हिसाब करने आये हैं। इसलिए बस अच्छे कर्म करो ताकि हमें बाद में भुगतना ना पड़े। वो स्त्री समझ गयी और अपने घर लौट गयी।

शिक्षा: *हमेशा अच्छे कर्म करने चाहिए।*

Friday, 15 July 2022

K A R A C H I - THE DEMISE OF A DREAM

K A R A C H I - THE DEMISE OF A DREAM

FROM A PEACEFUL HINDU MAJORITY & SINDHI SPEAKING CITY TO A VIOLENT MUSLIM MAJORITY & URDU SPEAKING CITY WITHIN 10 YEARS. 

Before Partition Karachi was a Hindu-majority city and a Sindhi-speaking city.  The architecture of the old quarters of Karachi resembled old Bombay, a port city with which it shared many similarities of culture, languages and food. 

But Karachi’s demography underwent huge change in 1947. Within a few months of Partition, 80,000 people arrived from Delhi. That was the beginning of an exodus from India which continued and in 8 years, over half a million people were added to the city’s population. In 8 years, Karachi had become a predominantly Muslim city and more than half of its population was Urdu-speaking. Very few cities in the world have undergone such a rapid change. That change is the root cause of the presently fragmented city. 

EXTREME VIOLENCE AND RIOTS IN KARACHI

At the time of Partition Karachi was capital of Sindh, but it became capital of Pakistan and the capital of Sindh was pushed out to Hyderabad. Many of Karachi’s ethnic problems are related to this fact. Today Karachi is the capital of a Sindhi-speaking province but Sindhi is not the main language.
 
THE LARGEST PASHTUN CITY IN THE WORLD. 

Do you which is the largest city of PATHANS in the World? No, it's not Kabul, Peshawar or Kandhar. It is KARACHI. Out of its 17 million residents, a quarter are Pashtuns, which is 4 times more than the total population of Kabul. 

Karachi is the largest city of Pakistan. It is the financial capital, the major trading sea port of the country, contributing 42 percent of GDP, 70 percent of income tax revenue and 62 percent of sales tax revenue.

PROBLEMS OF KARACHI

Pollution, traffic, water, electricity, waste management, traffic, crime, terrorism, sectarian violence, are not the only problems of this unmanageable metropolis. The most industrialised city of Pakistan is the most weaponized as well as well as the most ethnically diverse with 45% Urdu speaking Mohajirs, 25% Pashtun and the remaining 30% comprise Punjabis, Sindhis, Balochs, etc.

VIOLENCE AND CRIME

Violence between Sindhis, Muhajir and Pathans is not a new phenomenon. Urban ethnic violence in Karachi has a complex history, dating back to the formation of Pakistan. There have always been tense relations between Mohajirs and Pashtuns. The radicalisation of these diverse ethnic grievances has created a dynamic of entrenched violence in Karachi. 

Karachi is Pakistan in microcosm. 

It is a fragmented city, in which the military, political parties, and religious militants with their substantial presence, will always keep economic and political stability in a flux. KARACHI is a battleground. It is on fire and the warring groups are killing each-other indiscriminately. It is the Karma of partition of India. The imploding Karachi is the future of the state of Pakistan. 

#khalidumarwrites
#karachiviolence

CHITRA, WHY DID YOU PAY MY HOTEL BILL

CHITRA, WHY DID YOU PAY MY HOTEL BILL 
The ticket collector came in and started checking people's tickets. Suddenly, he looked in my direction and asked, 'What about your ticket?'
'Not you, madam, the girl hiding below your berth. Hey, come out, where is your ticket?' Someone was sitting below my berth. When the collector yelled at her, the girl came out of hiding.
She was thin, dark, scared and looked like she had been crying profusely. She must have been about 13 or 14 years old. She had uncombed hair and was dressed in a torn skirt and blouse. She was trembling and folded both her hands. The collector started forcibly pulling her out from the compartment. Suddenly, I had a strange feeling. I stood up and called out to the collector. 'Sir, I will pay for her ticket,' I said.
Then he looked at me and said, 'Madam, if you give her ten rupees, she will be much happier with that than with the ticket.'
I did not listen to him. I told the collector to give me a ticket to the last destination, Bangalore, so that the girl could get down wherever she wanted.
Slowly, she started talking. She told me that her name was Chitra. She lived in a village near Bidar. Her father was a coolie and she had lost her mother at birth. Her father had remarried and had two sons with her stepmother. But a few months ago, her father died. Her stepmother started beating her often and did not give her food. She did not have anybody to support her so she left home in search of something better.
By this time, the train had reached Bangalore. I said goodbye to Chitra and got down from the train. My driver came and picked up my bags. I felt someone watching me. When I turned back, Chitra was standing there and looking at me with sad eyes. But there was nothing more that I could do. I had paid her ticket out of compassion but I had never thought that she was going to be my responsibility!
I told her to get into my car. My driver looked at the girl curiously. I told him to take us to my friend Ram's place. Ram ran separate shelter homes for boys and girls. We at the Infosys Foundation supported him financially. I thought Chitra could stay there for some time and then we could talk about her future.
Ram suggested that Chitra could go to a high school nearby. I said that I would sponsor her expenses. I left the shelter knowing that Chitra had found a home and a new direction in her life.
I always enquired about Chitra's well-being over the phone. She was studying well and her progress was good.. I offered to sponsor her college studies if she wanted to continue studying. But she said, 'No, Akka. I have talked to my friends and made up my mind. I would do my diploma in computer science so that I can immediately get a job after 3 years.' She wanted to become economically independent as soon as possible.  
Chitra obtained her diploma & got a job in a software company as an assistant testing engineer. When she got her first salary, she came to my office with a sari and a box of sweets.
One day, I got a call from Chitra. She was very happy. 'Akka, my company is sending me to USA! I wanted to meet you and take your blessings but you are not here in Bangalore.'
Years passed. Occasionally, I received an e-mail from Chitra. She was doing very well in her career. She was posted across several cities in USA and was enjoying life. I silently prayed that she should always be happy wherever she was.
Years later, I was invited to deliver a lecture in San Francisco for Kannada Koota, an organization where families who speak Kannada meet and organize events. The lecture was in a convention hall of a hotel and I decided to stay at the same hotel. After the lecture, I was planning to leave for the airport. When I checked out of the hotel room and went to the reception counter to pay the bill, the receptionist said, 'Ma'am, you don't need to pay us anything. The lady over there has already settled your bill. She must know you pretty well.' I turned around and found Chitra there.
She was standing with a young white man and wore a beautiful sari. She was looking very pretty with short hair. Her dark eyes were beaming with happiness and pride. As soon as she saw me, she gave me a brilliant smile, hugged me and touched my feet. I was overwhelmed with joy and did not know what to say. I was very happy to see the way things had turned out for Chitra. 
But I came back to my original question. 'Chitra, why did you pay my hotel bill? That is not right.' Suddenly sobbing, she hugged me and said, 'Because you paid for my ticket from Bombay to Bangalore!'
(Excerpted from Mrs. Sudha Murty's 'The Day I Stopped Drinking Milk’ ).

Thursday, 14 July 2022

𝑻𝑯𝑬 𝑺𝑻𝑶𝑹𝒀 𝑶𝑭 𝑩𝑯𝑨𝑮𝑾𝑨𝑻𝑰 𝑺𝑯𝑨𝑺𝑯𝑻𝑰 𝑫𝑬𝑽𝑰 𝑨𝑵𝑫 𝑾𝑯𝒀 𝑾𝑬 𝑪𝑬𝑳𝑬𝑩𝑹𝑨𝑻𝑬 6𝑻𝑯 𝑫𝑨𝒀(छठी) 𝑪𝑬𝑹𝑬𝑴𝑶𝑵𝒀 𝑶𝑭 𝑨 𝑵𝑬𝑾 𝑩𝑶𝑹𝑵 𝑩𝑨𝑩𝒀

𝑻𝑯𝑬 𝑺𝑻𝑶𝑹𝒀 𝑶𝑭 𝑩𝑯𝑨𝑮𝑾𝑨𝑻𝑰 𝑺𝑯𝑨𝑺𝑯𝑻𝑰 𝑫𝑬𝑽𝑰 𝑨𝑵𝑫 𝑾𝑯𝒀 𝑾𝑬 𝑪𝑬𝑳𝑬𝑩𝑹𝑨𝑻𝑬 6𝑻𝑯 𝑫𝑨𝒀(छठी) 𝑪𝑬𝑹𝑬𝑴𝑶𝑵𝒀 𝑶𝑭 𝑨 𝑵𝑬𝑾 𝑩𝑶𝑹𝑵 𝑩𝑨𝑩𝒀
🚩 The sixth day after a child is born, every Sanatani organises a Devi Puja called as Chhathi Puja. Devi Puran mentions the importance of this Puja for the safety of the child.

🚩 𝐂𝐡𝐡𝐚𝐭𝐡𝐢 𝐌𝐚𝐭𝐚 𝐨𝐫 𝐒𝐡𝐚𝐬𝐡𝐭𝐢 𝐌𝐚𝐭𝐚 𝐢𝐬 𝐭𝐡𝐞 𝐨𝐧𝐞 𝐬𝐢𝐱𝐭𝐡 𝐩𝐚𝐫𝐭 𝐨𝐟 𝐉𝐚𝐠𝐝𝐚𝐦𝐛𝐢𝐤𝐚 𝐁𝐡𝐚𝐠𝐰𝐚𝐭𝐢. 𝐒𝐡𝐞 𝐢𝐬 𝐭𝐡𝐞 𝐤𝐧𝐨𝐰𝐧 𝐚𝐬 𝐭𝐡𝐞 𝐃𝐞𝐯𝐢 𝐰𝐡𝐨 𝐢𝐬 𝐫𝐞𝐬𝐩𝐨𝐧𝐬𝐢𝐛𝐥𝐞 𝐟𝐨𝐫 𝐚𝐥𝐥 𝐭𝐡𝐞 𝐚𝐬𝐩𝐞𝐜𝐭𝐬 𝐨𝐟 𝐛𝐢𝐫𝐭𝐡 𝐨𝐟 𝐭𝐡𝐞 𝐜𝐡𝐢𝐥𝐝 𝐫𝐢𝐠𝐡𝐭 𝐟𝐫𝐨𝐦 𝐢𝐭𝐬 𝐛𝐢𝐫𝐭𝐡 𝐭𝐨 𝐢𝐭𝐬 𝐠𝐫𝐨𝐰𝐭𝐡. 𝐒𝐡𝐞 𝐢𝐬 𝐊𝐚𝐫𝐭𝐢𝐤𝐞𝐲𝐚'𝐬 𝐰𝐢𝐟𝐞 𝐃𝐞𝐯 𝐒𝐞𝐧𝐚 𝐩𝐨𝐩𝐮𝐥𝐚𝐫𝐥𝐲 𝐤𝐧𝐨𝐰𝐧 𝐚𝐬 𝐒𝐡𝐚𝐬𝐡𝐭𝐢 𝐃𝐞𝐯𝐢. 𝐓𝐡𝐞 𝐬𝐭𝐨𝐫𝐲 𝐚𝐛𝐨𝐮𝐭 𝐡𝐞𝐫 𝐢𝐦𝐩𝐨𝐫𝐭𝐚𝐧𝐜𝐞 𝐢𝐧 𝐚 𝐜𝐡𝐢𝐥𝐝'𝐬 𝐛𝐢𝐫𝐭𝐡, 𝐠𝐫𝐨𝐰𝐭𝐡 𝐚𝐧𝐝 𝐬𝐚𝐟𝐞𝐭𝐲 𝐢𝐬 𝐦𝐞𝐧𝐭𝐢𝐨𝐧𝐞𝐝 𝐛𝐞𝐥𝐨𝐰 𝐚𝐬 𝐧𝐚𝐫𝐫𝐚𝐭𝐞𝐝 𝐛𝐲 𝐒𝐡𝐫𝐢 𝐇𝐚𝐫𝐢 𝐭𝐨 𝐍𝐚𝐫𝐚𝐝.

🚩 Brahma's son was Manu. He was entrusted with the responsibility for creating, increasing and inhabiting the earth with people. Manu carried on this task. His son Priyavrat was reluctant to marry as he was more of a pious person. So Brahma Dev had to convince him to get married. He was married to Malini.

🚩 He was worried as he remained childless. So Rishi Kashyap gave some Yagya for this purpose. 
Malini was pregnant for twelve years after which she delivered a beautiful child, but it was a dead child. Priyavrat took the child to carry out the last rites. There he cried his heart out with the dead child in his arms.

🚩 Then he noticed a crystal shiny and glowing object. He realised that it is a divine Vimaan and a Devi sitting in it. He paid his respects and wanted to know more about the Devi. 𝐒𝐡𝐞 𝐭𝐞𝐥𝐥𝐬 𝐡𝐢𝐦 𝐭𝐡𝐚𝐭 𝐒𝐡𝐞 𝐢𝐬 𝐒𝐡𝐚𝐬𝐡𝐭𝐢, 𝐭𝐡𝐞 𝐨𝐧𝐞 𝐬𝐢𝐱𝐭𝐡 𝐩𝐚𝐫𝐭 𝐨𝐫 𝐀𝐧𝐬𝐡 𝐨𝐟 𝐁𝐡𝐚𝐠𝐰𝐚𝐭𝐢. 𝐒𝐡𝐞 𝐭𝐞𝐥𝐥𝐬 𝐡𝐢𝐦 𝐰𝐡𝐨𝐞𝐯𝐞𝐫 𝐢𝐧𝐯𝐨𝐤𝐞𝐬 𝐇𝐞𝐫 𝐨𝐧 𝐭𝐡𝐞 𝐬𝐢𝐱𝐭𝐡 𝐝𝐚𝐲 𝐚𝐟𝐭𝐞𝐫 𝐭𝐡𝐞 𝐜𝐡𝐢𝐥𝐝'𝐬 𝐛𝐢𝐫𝐭𝐡 𝐰𝐢𝐥𝐥 𝐛𝐞 𝐠𝐫𝐚𝐧𝐭𝐞𝐝 𝐇𝐞𝐫 𝐛𝐥𝐞𝐬𝐬𝐢𝐧𝐠𝐬 𝐟𝐨𝐫 𝐭𝐡𝐞 𝐰𝐞𝐥𝐟𝐚𝐫𝐞 𝐨𝐟 𝐭𝐡𝐞 𝐜𝐡𝐢𝐥𝐝. Actually one is responsible for his own Karma. Whatever Karma one does is reflected in one's life. His sufferings and happiness are all Karma based. 

🚩 𝐀𝐬 𝐒𝐡𝐞 𝐰𝐚𝐬 𝐧𝐚𝐫𝐫𝐚𝐭𝐢𝐧𝐠 𝐚𝐥𝐥 𝐭𝐡𝐢𝐬 𝐒𝐡𝐞 𝐜𝐚𝐫𝐫𝐢𝐞𝐬 𝐭𝐡𝐞 𝐜𝐡𝐢𝐥𝐝 𝐢𝐧 𝐇𝐞𝐫 𝐚𝐫𝐦𝐬. 𝐓𝐡𝐞 𝐜𝐡𝐢𝐥𝐝 𝐢𝐬 𝐚𝐥𝐢𝐯𝐞 𝐧𝐨𝐰. 𝐀𝐟𝐭𝐞𝐫 𝐟𝐢𝐧𝐢𝐬𝐡𝐢𝐧𝐠 𝐇𝐞𝐫 𝐧𝐚𝐫𝐫𝐚𝐭𝐢𝐯𝐞 𝐒𝐡𝐞 𝐭𝐫𝐢𝐞𝐬 𝐭𝐨 𝐭𝐚𝐤𝐞 𝐭𝐡𝐞 𝐜𝐡𝐢𝐥𝐝 𝐚𝐥𝐨𝐧𝐠 𝐰𝐢𝐭𝐡 𝐇𝐞𝐫 𝐭𝐨 𝐒𝐰𝐚𝐫𝐠. 𝐁𝐮𝐭 𝐭𝐡𝐞 𝐝𝐢𝐬𝐭𝐫𝐚𝐮𝐠𝐡𝐭 𝐟𝐚𝐭𝐡𝐞𝐫 𝐫𝐞𝐪𝐮𝐞𝐬𝐭𝐬 𝐇𝐞𝐫 𝐭𝐨 𝐠𝐢𝐯𝐞 𝐛𝐚𝐜𝐤 𝐡𝐢𝐬 𝐜𝐡𝐢𝐥𝐝. 𝐒𝐡𝐞 𝐫𝐞𝐭𝐮𝐫𝐧𝐬 𝐭𝐡𝐞 𝐜𝐡𝐢𝐥𝐝 𝐨𝐧 𝐭𝐡𝐞 𝐜𝐨𝐧𝐝𝐢𝐭𝐢𝐨𝐧 𝐭𝐡𝐚𝐭 𝐡𝐞 𝐰𝐨𝐮𝐥𝐝 𝐬𝐞𝐞 𝐭𝐡𝐚𝐭 𝐩𝐞𝐨𝐩𝐥𝐞 𝐬𝐡𝐨𝐮𝐥𝐝 𝐬𝐭𝐚𝐫𝐭 𝐰𝐨𝐫𝐬𝐡𝐢𝐩𝐩𝐢𝐧𝐠 𝐒𝐡𝐚𝐬𝐡𝐭𝐢 𝐌𝐚𝐭𝐚 𝐚𝐬 𝐒𝐡𝐞 𝐰𝐨𝐮𝐥𝐝 𝐝𝐞𝐟𝐢𝐧𝐢𝐭𝐞𝐥𝐲 𝐥𝐨𝐨𝐤 𝐚𝐟𝐭𝐞𝐫 𝐭𝐡𝐞 𝐰𝐞𝐥𝐥-𝐛𝐞𝐢𝐧𝐠 𝐚𝐧𝐝 𝐬𝐞𝐜𝐮𝐫𝐢𝐭𝐲 𝐨𝐟 𝐭𝐡𝐞 𝐜𝐡𝐢𝐥𝐝. 𝐏𝐫𝐢𝐲𝐚𝐯𝐫𝐚𝐭 𝐠𝐢𝐯𝐞𝐬 𝐡𝐢𝐬 𝐰𝐨𝐫𝐝 𝐟𝐨𝐫 𝐭𝐡𝐞 𝐬𝐚𝐦𝐞. 𝐓𝐡𝐞 𝐃𝐞𝐯𝐢 𝐥𝐞𝐟𝐭 𝐰𝐢𝐭𝐡𝐨𝐮𝐭 𝐭𝐡𝐞 𝐜𝐡𝐢𝐥𝐝.

🚩 On returning back, the people of his kingdom rejoice with happiness. He performs the Shashti Puja at his palace and also sees that wherever a child is born the sixth day Puja, would be essential. His kingdom flourished not only with wealth but happiness.

🚩 So always perform the Shashti Puja together with all the traditional rituals and keep doing the jaap of ॐ हृं षष्ठी देवैये स्वाहा॥

𝑺𝒐𝒖𝒓𝒄𝒆 - 𝑫𝒆𝒗𝒊 𝑷𝒖𝒓𝒂𝒏

#𝐒𝐀𝐍𝐀𝐀𝐓𝐀𝐍𝐓𝐀𝐋𝐄𝐒

𝐏𝐥𝐞𝐚𝐬𝐞 𝐟𝐨𝐥𝐥𝐨𝐰 𝐮𝐬 @𝐬𝐚𝐧𝐚𝐚𝐭𝐚𝐧𝐭𝐚𝐥𝐞𝐬 𝐨𝐧 𝐈𝐧𝐬𝐭𝐚𝐠𝐫𝐚𝐦, 𝐓𝐰𝐢𝐭𝐭𝐞𝐫 & 𝐊𝐨𝐨

The 7 types of people in your life

🙏🌞✨There are many different kinds of people in this world within reason but most can be summed up within just a few categories if you really think about it on a cosmic level. We are all meant to obtain something or give something with each connection we have or come across.

This universe will never put someone before you that you were not meant to meet. Even at the worst moments the people surrounding you are meant to be there. Embrace the good and the bad and know that you are not ever going to be thrown more than you can handle!

1. The Heartbreakers
These are the people who come into our lives and really make us feel on top of the world only to throw us off the edge of the building. They break us in more ways than we ever thought were possible but in doing that they teach us a very hard lesson. That lesson is different for everyone and each Heartbreakers.

While we shouldn’t assume people breaking our hearts is alright those toads parading around as knights in shining armor don’t just pop up for no reason. They are very negative and you might wish you had never met them they will, in the long run, teach you a very valuable lesson through this pain. Don’t obsess over it but also don’t forget to learn from your mistakes.

2. The Eternals
These are the people who come into your life and stay in your life. They support you and become lasting friends or close family members that never shy away. They have your back when you need them and the universe uses them to comfort you in many ways.

They are the people who understand you and accept you as who you truly are. They are there through the good times and the bad times. Nothing can tear them away from you. You are always there for one another no matter the situation. People like this are far and few.

3. The Runners
These are the people who come into your life and quickly change you. These changes may be positive, or they might be overly negative, that varies. They do not stick around for long and when they leave you feeling like they have taken a part of you with them.

Learning to let go of these people is important. It can be a bit painful but it is a different kind of pain than the pain you feel when the heartbreaker comes around or chooses to leave. This is a much cleaner cut.

4. The Reminders
These are the people who come into your life to remind you of something. They sometimes stick around for a while but usually are only here for a moment. They give you simple pointers or remind you of something you had been forgetting. These kinds of people often go overlooked.

5. The Teachers
These are the people who come to you to teach you something. They have a lesson ready for you whether they realize it or not. They force you to accept yourself and to move forward whether you want to or not. These kinds of people really make a huge difference in our lives.

6. The Learners
These are the people who come into our lives to learn from us. You see, we don’t always have to be the ones learning. Sometimes we can be the teachers. During this time we through our actions without realizing it teaches something to someone that really shapes who they become. We make a much bigger difference than we ever thought that we could.

7. The empowerers
These are the people who really push you to do and be who you want to be. They come into your life at the perfect time and really empower you. They make you feel like you can accomplish anything you put your mind to and from that you are able to truly soar. Feeling like someone believes in you is an amazing thing to experience, and we all deserve that experience.🙏💞

Wednesday, 13 July 2022

🌷असीम उपकार माता-पिता का 🌷

🌷असीम उपकार माता-पिता का 🌷
माता-पिता जननी है, जनक है।

कहने को तो कहते है की कोई ब्रह्मा हमारा सृजन करता है। परंतु प्रत्यक्ष सच्चाई तो यह है की माता-पिता ही हमारे ब्रह्मा है।वे ही हमारा सृजन करते है।

जिन अद्रश्य देवताओ को हम पूजते है, उनके मुकाबले माता-पिता प्रत्यक्ष देवता है और पूज्य है।

किसी को हाथ जोड़कर पूरब दिशा को पूजते हुऐ देखकर भगवान् बुद्ध ने कहा की माता-पिता ही पूरब दिशा है।उन्हें हाथ जोड़कर पूजो।यही सही पूजा हैं। 

माता-पिता का उपकार असीम है,इस कारण संतान द्वारा उनका पूजन-अर्चन, उनकी सेवा सत्कार करना यही सही दिशा वंदन है,यही उत्तम मंगल भी है।

माता-पिता को दुःख देना जघन्य पाप-कर्म है।

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www.vridhamma.org
Ref - Sigalovada sutta #Newsletter posted on 02Aug17 on this page.

Parents served by their son in these five ways in turn, show compassion for him, and make his future bright by doing the following five things:-

1. Save him from committing sinful actions. 
2. Encourage him to perform meritorious actions. 
3. Teach him to develop skills in a craft. 
4. Arrange a suitable wife for him. 
5. Creating an opportunity to give him an inheritance. 

Thus served in these 5 ways his parents, in return, show compassion for him. This is the right way for a householder to worship the east and make oneself safe and secure.

#Buddha #Dhamma #Sangha #SNGoenka #Duties #Householder #Sutta #Parents #Children

Tuesday, 12 July 2022

Is it a trifle to give initiation?

Once, on hearing from the Holy Mother, that she would pass away soon, a devotee felt much dejected, thinking that he would be helpless after her time. To encourage him she said: “Do you think, that even if this body passes away, I can have any release, unless every one of those, whose responsibility I have taken on myself, is out of bondage? I must constantly live with them. I have taken complete charge of everything, good or bad, regarding them. Is it a trifle to give initiation? What a tremendous responsibility have we to accept! How much anxiety have we to suffer for them! Just see! Your father is dead, and that at once made me feel worried about you. I thought: “How is it that the Master is again putting him to test?” That you may come out of this ordeal is my constant prayer. For this reason I gave you all this advice. Can you understand everything I say? If you could do so, that would lighten my worries to a great extent. Sri Ramakrishna is playing with his different children in diverse ways, but I have to bear the brunt of it. I cannot simply set aside those, whom I have accepted as my own”.

Holy Mother Sri Sarada Devi
(Swami Tapasyananda “Sri Sarada Devi – The Holy Mother: Her Life and Conversations”, Book II, Ch. XXII, Conversations – Third Series, Spiritual Practices in General, “From the Diaries of Several Disciples, Monastic and Lay”, pp. 554-5)

Sunday, 10 July 2022

पाँच सत्पुरूष-दान


भिक्षुओ ! ये पाँच सत्पुरूष-दान है। 

कौन से पाँच?

1) श्रद्धापूर्वक दान,
2) गौरव सहित दान,
3) उचित समय पर दान,
4) मुक्त हस्त होकर दान,
5) बिना अपने या दूसरे को आघात पहुँचाये दान ।

1) श्रद्धापूर्वक दान :
"भिक्षुओ ! जो श्रद्धापूर्वक दान देता है, उसे जहाँ जहाँ उस दान का फल प्राप्त होता है वहाँ वहाँ, वह धनवान पैदा होता है, महा धनवान पैदा होता है, ऐश्वर्यशाली होता है, सुन्दर होता है, दर्शनीय होता है, मनोरम होता है तथा श्रेष्ठतम रूप से युक्त होता है।
 
2) गौरव सहित दान :
भिक्षुओ ! जो गौरव सहित दान देता है, उसे जहाँ जहाँ उस दान का फल प्राप्त होता है वहाँ वहाँ वह धनवान पैदा होता है, महा धनवान पैदा होता है, ऐश्वर्यशाली होता है, सुन्दर होता है, दर्शनीय होता है मनोरम होता है, तथा श्रेष्ठतम रूप से युक्त होता है। 

3) उचित समय पर दान :
भिक्षुओ ! जो उचित समय पर दान देता है, उसे जहाँ जहाँ उन दान का फल प्राप्त होता है, वहाँ वहाँ वह धनवान पैदा होता है, महा धनवान पैदा होता है, ऐश्वर्यशाली होता है, सुन्दर होता है, दर्शनीय होता है, मनोरम होता है तथा श्रेष्ठतम रूप से युक्त होता है। 

4) मुक्त हस्त होकर दान :
 भिक्षुओ ! जो मुक्त हस्त होकर दान देता है,उसे जहाँ जहाँ उस दान का फल प्राप्त होता है, वहाँ वहाँ वह धनवान पैदा होता है, महा धनवान पैदा होता है, ऐश्वर्यशाली होता है, सुन्दर होता है, दर्शनीय होता है, मनोरम होता है तथा श्रेष्ठतम रूप से युक्त होता है । 

5) बिना आघात पहुंचाये दान :
भिक्षुओ ! जो अपने को या दूसरे को काया, वाचा या मन से किसी भी प्रकार से आघात पहुँचाये बिना दान देता है, उसे जहाँ जहाँ उस दान का फल प्राप्त होता है, वहाँ वहाँ वह धनवान पैदा होता है, महा धनवान पैदा होता है, ऐश्वर्यशाली होता हैं और आग से, पानी से, राजा से, चोर से, अथवा अप्रिय उत्तराधिकारी से किसी से भी उसे धन-हानि का खतरा नहीं रहता। 

नमो बुद्धाय

Ref:
सत्पुरूष सुत्त : अन्गुत्तर निकाय

Thursday, 7 July 2022

तस्माये श्री गुरुवे नमः

गुरु - इस एक शब्द का इतना विशाल, इतना गहरा और इतना गहरा अर्थ है कि इसे विस्तृत करना किसी भी व्यक्ति के लिए बहुत मुश्किल है। दुनिया की किसी भी भाषा में इसका अनुवाद करने की क्षमता नहीं है और न ही शब्दों की मात्रा में क्षमता है  इसे समझाओ।  गुरु का कद इतना ऊंचा है कि अगर कोई पूरी तरह से समर्पण कर देता है, तो वह केवल अपने पैर की उंगलियों को छूने में सक्षम होता है - जहां गुरु के पैर होते हैं, शिष्य या भक्त श्रद्धा से अपना सिर झुकाते हैं।  दूसरे शब्दों में, सद्गुरु का सबसे निचला स्तर (यानी, उनके चरण कमलों) शिष्यों का उच्चतम स्तर (यानी सिर) है।  जैसे, उत्तरार्द्ध एक सद्गुरु के समग्र कद का वर्णन करने की स्थिति में नहीं हैं।

 गुरु शब्द का अंग्रेजी भाषा में अनुवाद 'शिक्षक' या 'गुरु' होता है।  इन शब्दों को शब्द के सामान्य अर्थों में अधिक से अधिक समझा जा सकता है, लेकिन इसकी संपूर्णता के दायरे में कहीं भी स्पर्श न करें।  गुरु शब्द हिंदू दर्शन में सबसे कठिन शब्दों में से एक है - एक दर्शन जो सबसे पुराना है और 5,000 वर्षों से अधिक की अनूठी जीवित परंपरा है, यदि पहले नहीं तो।

 जाने-माने भारतीय संत और उच्च कोटि की आत्मा संत कबीर अपने एक दोहे (दोहे) में गुरु का वर्णन करने में अपनी असमर्थता व्यक्त करते हैं।  वह कहते हैं, भले ही वह पूरी पृथ्वी को कागज के रूप में ले लें, सभी महासागरों के पानी को स्याही के रूप में काम करें और वह दुनिया के सभी पेड़ों से कलाम (पारंपरिक लेखन उपकरण) बनाता है, फिर भी वह वर्णन नहीं कर पाएगा  'गुरु' शब्द का पूरा अर्थ और महिमा।  एक शिष्य (या एक भक्त) में अपने गुरु के प्रति इतनी श्रद्धा होती है जो संत कबीरजी के निम्नलिखित दोहे में परिलक्षित होती है:

 गुरु गोबिंद दो खड़े, का के लगून पाए

 बलिहारी गुरु आपने, जिन गोबिंद दियो मिलाये

 गुरु और गोबिंद (ईश्वर) दोनों ही पूजनीय और पूजनीय हैं, लेकिन संत कबीर 'गुरु' को ईश्वर से भी ऊंचे पद पर बिठाते हैं।  वह कहता है कि यदि गुरु और भगवान दोनों मिलकर उसे दर्शन देने के लिए कृपा करते हैं, तो वह भगवान से आशीर्वाद लेने से पहले अपने 'गुरु' के चरण कमलों को छूएगा, क्योंकि यह वह (गुरु) है जिसने उसे भगवान का रास्ता दिखाया।

 'गुरु' शब्द दो मूल से बना है - 'गु' और 'रु'।  'गु' का अर्थ है अंधकार और 'रु' का अर्थ है प्रकाश।  जो अंधकार को दूर कर प्रकाश की ओर ले जाए वही गुरु है।  जो इन्द्रिय सुखों और दुखों (जो अस्थायी और क्षणभंगुर हैं) के अंधकार को दूर कर आपको शाश्वत आनंद (जो स्थायी और
 चिरस्थायी है) के प्रकाश में ले जाता है, वह गुरु है।  जो आपको जन्म, मृत्यु और पुनर्जन्म के बंधनों को तोड़ने और मोक्ष प्राप्त करने में मदद करता है वह गुरु है।
अपने अतीत और वर्तमान के 'कर्मों' के आधार पर, किसी विशेष परिवार (अमीर या गरीब) में जो जन्म लेता है, उसकी परवरिश, उसकी शिक्षा और उसके वातावरण पर निर्भर करता है।  अपने अतीत और वर्तमान 'कर्मों' और 'संस्कारों' के आधार पर, हम चौरासी लाख प्रजातियों (योनियों) में से किसी में भी बार-बार जन्म लेते हैं और एक जन्म से दूसरे जन्म तक अज्ञानता के अंधेरे में शराब पीते और यात्रा करते रहते हैं, यह भूल जाते हैं कि कहाँ से है  हम आए और हमारी अंतिम मंजिल क्या है - यानी मोक्ष।

 महात्मा कबीर ने प्रार्थना की।  'हे भगवान, मुझे दो आग से बचाओ - एक, मेरी माँ के गर्भ में नौ महीने के लिए उल्टा लटका हुआ, और दूसरा, जब आत्मा के शरीर छोड़ने के तुरंत बाद मेरी शारीरिक संरचना को आग की लपटों में डाल दिया जाता है।

 सृष्टि की शुरुआत में बलिदान की भावना के साथ मानव जाति का निर्माण करने के बाद, निर्माता, भगवान ब्रह्मा ने उन्हें निम्नलिखित सलाह दी: "आप इस बलिदान की भावना से गुणा और समृद्ध हो (आसक्ति से मुक्त), क्या यह आपको आनंद प्रदान कर सकता है  मांगना।  बलिदान की भावना के साथ एक-दूसरे का पालन-पोषण करें और देवताओं को आप पर कृपा करने दें।  निःस्वार्थ भाव से एक-दूसरे का पालन-पोषण करने से तुम परम कल्याण को प्राप्त हो जाओगे।  यज्ञ से प्रेरित होकर, देवता निश्चित रूप से आपको बिना मांगे सभी वांछित भोग प्रदान करेंगे।  वह जो दूसरों के साथ साझा किए बिना उसे दिए गए उपहारों का आनंद लेता है, निस्संदेह चोर है। ”

 (भगवद गीता, अध्याय III, श्लोक 10-12)

 इस सलाह का उद्देश्य संपूर्ण मानव जाति के लिए शांति, प्रगति, समृद्धि और शांति सुनिश्चित करना रहा होगा।

 तब इस अद्भुत भूमि (भारत) के प्राचीन संतों और संतों ने मानव गरिमा और सार्वभौमिक भाईचारे को ऊपर उठाने के लिए 'वसुधैव कुटुम्बकम' (यह पूरा विश्व एक परिवार है और हम इस वैश्विक समाज के सदस्य हैं) के सिद्धांत की कल्पना और व्याख्या की।  शांति और समृद्धि की प्राप्ति।

 लेकिन जैसे-जैसे मानव जाति कई गुना बढ़ी, कहीं न कहीं हम दिव्य सलाह और अपने विद्वान ऋषियों के संदेश को भूल गए।  हम अधिक से अधिक भौतिकवादी और आत्मकेंद्रित होते गए।  इस प्रक्रिया में, हमने अपने चारों ओर दीवारें बनाने की प्रवृत्ति विकसित की - अहंकार-केंद्रित इच्छाओं की दीवारें।  इस तरह हम प्रतिबंधित करते हैं

 इस तरह हम शरीर के साथ स्वयं की पहचान के माध्यम से अपनी दृष्टि, हमारे विचारों, हमारे कार्यों को प्रतिबंधित करते हैं।  मैंने और इस शरीर के द्वारा मुझसे जुड़े लोगों ने मेरे विस्तार की सीमा निर्धारित की है।  भौतिक वस्तुओं में तल्लीन, हम उन दीवारों के भीतर जो देखते हैं, हम सोचते हैं कि वह हमारा है।  और जो कुछ भी हमारे लिए अज्ञात है और उन दीवारों के बाहर, हम एक अजनबी और एक दुश्मन के रूप में देखते हैं।  शरीर के साथ यह तादात्म्य न केवल मेरे चारों ओर दीवारें बनाता है, बल्कि मुझे उन अन्य लोगों से अलग कर देता है जो इन छोटी दीवारों से परे हैं।  प्रसिद्ध फ्रांसीसी दार्शनिक रूसो के शब्दों में, "धिक्कार है उस आदमी को जिसने कहा: यह मेरा है और वह तेरे में है - इस प्रकार आत्म-केंद्रितता और ईर्ष्या और शत्रुता की भावना के बीज बोए।"
जीवन को संयम और मन की स्थिरता के साथ आगे बढ़ाया।  वह वह है जो जागरूकता लाता है कि इंद्रियों के प्रभाव में किए गए कार्य (कर्म) कामुक सुख और पीड़ा को जन्म देते हैं, जो क्षणभंगुर और क्षणभंगुर हैं।  वह आपको पांच जंगली घोड़ों - 'काम' (जुनून), 'क्रोध' (क्रोध), 'लोभा' (लालच), 'मोह' (भावनात्मक लगाव) और 'अहंकार' (अहंकार) को अनुशासन और नियंत्रण में लाने के लिए मार्गदर्शन करता है।  - और आपको अपने जीवन के रथ को आंतरिक शांति और शांति की सही दिशा में ले जाने में मदद करता है।  वह आप में एक अहसास लाता है कि कामुक वस्तुओं में अधिक भोग तमोगुण को जन्म देता है जिसके परिणामस्वरूप पछतावा, पछतावा, दुःख और शांति का नुकसान होता है।  एक पिता की तरह, गुरु आपकी छोटी उंगली को पकड़ते हैं और आपको निडरता से मायावी भौतिक दुनिया से आध्यात्मिकता के क्षेत्र में यात्रा करने के लिए कहते हैं, ताकि आप वास्तविक के साथ एक हो सकें और परम सत्य - यानी भगवान को महसूस कर सकें।

 वह आपको बताता है कि मन और बुद्धि के प्रभाव में किए गए कर्म (कर्म) इच्छा से ग्रस्त हैं और भौतिक लाभ के लिए समर्पित हैं।  इस तरह के कार्यों को आम तौर पर इस शरीर के माध्यम से स्वयं और स्वयं से संबंधित लोगों की सेवा के लिए किया जाता है।  यह रजोगुण को जन्म देता है।  जितना अधिक आप भौतिक सुखों की तलाश करते हैं, उतनी ही अधिक और अधिक पाने की इच्छा होती है, और आप मृगतृष्णा (मृगतृष्णा) में फंस जाते हैं।  मन में घड़ी के लोलक की तरह झूलने की प्रवृत्ति होती है - कभी इंद्रियों की ओर तो कभी बुद्धि की ओर।  इसलिए इसे स्थिर बनाना होगा।

 तुम कहाँ खो गए हो, मेरे बेटे, गुरु कहते हैं, अपने पूरे प्यार और कोमलता के साथ।  तुम शरीर नहीं हो, तुम आत्मा हो।  आप इस शरीर में प्रवेश करने से पहले मौजूद थे और इस शरीर को छोड़ने के बाद भी रहेंगे।  अपने आप को रोशन करो।  विवेक (अंतरात्मा) के प्रभाव में कार्य करें, जो 'परमात्मा' का एक अविभाज्य अंग है।  अपने आप को बाहरी भौतिक दुनिया से अलग कर लें और चेतना की आंतरिक दुनिया में प्रवेश करें।  प्रबुद्ध बनो, समभाव से रहो और आसक्ति से मुक्त हो जाओ।  जो अनासक्त है, उसका मन स्थिर है।  उसके लिए कामुक वस्तुएं समाप्त हो जाती हैं, उसके लिए अहंकार-केंद्रित इच्छाओं की दीवारें मौजूद नहीं होती हैं।  वह पूरी दुनिया का है और पूरी दुनिया उसका है - वसुधैव कुटुम्बकम।

 चेतना के मार्गदर्शन में, आपको एहसास होगा कि भगवान हर इंसान में निवास करते हैं, जो एक चल मंदिर की तरह पूजा के योग्य है।  अपने सामने आने वाले प्रत्येक मनुष्य में उसे देखने का प्रयास करें।  मानवता की सेवा करना ईश्वर की आराधना का सबसे अच्छा तरीका है।  मोक्ष प्राप्त करने का सबसे छोटा मार्ग उसकी रचना - मानव जाति की सेवा करना है।  याद रखें, आप लोगों की सेवा करके उन्हें बाध्य नहीं कर रहे हैं।  इसके विपरीत, वे आपको उनकी सेवा करने का अवसर देकर और दैवीय बैंकर, सर्वोच्च भगवान के साथ आपके 'कर्मों' के बैंक बैलेंस को बढ़ाने में आपकी मदद करके आपको बाध्य कर रहे हैं।  समर्पण और बलिदान की भावना से उनकी सेवा करें और 'दरिद्र नारायण' की प्रार्थना अर्जित करें।  जब हमारा 'सेवा' (सेवा) का कार्य प्रेम और करुणा के साथ किया जाता है और भावना (भावना) से भरा होता है, तो परिणामी संतोष और खुशी देने वाले और लेने वाले दोनों को अनंत मात्रा में संतुष्टि मिलती है।

tures ने हमें निम्नलिखित महागुरु मंत्र दिया है:

 गुरुर ब्रह्मा, गुरुर विष्णु,

 गुरुर देवो महेश्वर

 गुरु साक्षात पर ब्रह्मा,

 तस्माये श्री गुरुवे नमः

 गुरु और ईश्वर एक ही परम शक्ति के दो अलग-अलग नाम हैं।  यह भी उतना ही सच है कि जब हम गुरु के रूप में भगवान की पूजा करते हैं, तो हम उन्हें ऊंचे आसन पर रखते हैं।  हमें अपने कर्मों (कार्यों) के आधार पर ईश्वर द्वारा पुरस्कृत या दंडित किया जाता है।  लेकिन जब हम गुरु के आसन पर भगवान की पूजा करते हैं, जो परोपकारी और बख्नहार (उदारता से देने और क्षमा करने वाले) हैं, तो हमें अपने अच्छे कर्मों के लिए पर्याप्त रूप से पुरस्कृत किया जा सकता है, और हमारे पापों के लिए निर्दोष या अन्यथा किए गए दंड को माफ या कम किया जा सकता है।

 एक 'सद्गुरु' द्वारा बरसाए गए प्यार और स्नेह की यह प्रचुरता है कि आप जब तक चाहें उस आनंद के सागर में गोता लगाते रह सकते हैं।  सरल और विनम्र तरीके से, वे आपको बताएंगे कि मार्ग कितना स्पष्ट है और आपको मोक्ष का सबसे छोटा मार्ग दिखाता है - यानी, 'जप' (मंत्रों का आंतरिक पाठ), 'निष्काम सेवा' (मानवता की निस्वार्थ सेवा करना) का अभ्यास करें।  और 'ध्यान' (ध्यान)।

 हे मेरे पूज्य गुरुदेवी

 तू महान कल्पना है

 स्वयं प्रभु की;

 आपको मेरा नमस्कार,

 आपको मेरा नमस्कार

 तस्माये श्री गुरुवे नमः

सौजन्य गुरुदेव श्री रवि त्रेहन जी

अफजल खां का वध

20 नवम्बर, 1659 ई. - अफजल खां का वध :- बीजापुर की तरफ से अफजल खां को छत्रपति शिवाजी महाराज के खिलाफ भेजा गया। अफजल खां 10 हज़ार क...