भिक्षुओ ! ये पाँच सत्पुरूष-दान है।
कौन से पाँच?
1) श्रद्धापूर्वक दान,
2) गौरव सहित दान,
3) उचित समय पर दान,
4) मुक्त हस्त होकर दान,
5) बिना अपने या दूसरे को आघात पहुँचाये दान ।
1) श्रद्धापूर्वक दान :
"भिक्षुओ ! जो श्रद्धापूर्वक दान देता है, उसे जहाँ जहाँ उस दान का फल प्राप्त होता है वहाँ वहाँ, वह धनवान पैदा होता है, महा धनवान पैदा होता है, ऐश्वर्यशाली होता है, सुन्दर होता है, दर्शनीय होता है, मनोरम होता है तथा श्रेष्ठतम रूप से युक्त होता है।
2) गौरव सहित दान :
भिक्षुओ ! जो गौरव सहित दान देता है, उसे जहाँ जहाँ उस दान का फल प्राप्त होता है वहाँ वहाँ वह धनवान पैदा होता है, महा धनवान पैदा होता है, ऐश्वर्यशाली होता है, सुन्दर होता है, दर्शनीय होता है मनोरम होता है, तथा श्रेष्ठतम रूप से युक्त होता है।
3) उचित समय पर दान :
भिक्षुओ ! जो उचित समय पर दान देता है, उसे जहाँ जहाँ उन दान का फल प्राप्त होता है, वहाँ वहाँ वह धनवान पैदा होता है, महा धनवान पैदा होता है, ऐश्वर्यशाली होता है, सुन्दर होता है, दर्शनीय होता है, मनोरम होता है तथा श्रेष्ठतम रूप से युक्त होता है।
4) मुक्त हस्त होकर दान :
भिक्षुओ ! जो मुक्त हस्त होकर दान देता है,उसे जहाँ जहाँ उस दान का फल प्राप्त होता है, वहाँ वहाँ वह धनवान पैदा होता है, महा धनवान पैदा होता है, ऐश्वर्यशाली होता है, सुन्दर होता है, दर्शनीय होता है, मनोरम होता है तथा श्रेष्ठतम रूप से युक्त होता है ।
5) बिना आघात पहुंचाये दान :
भिक्षुओ ! जो अपने को या दूसरे को काया, वाचा या मन से किसी भी प्रकार से आघात पहुँचाये बिना दान देता है, उसे जहाँ जहाँ उस दान का फल प्राप्त होता है, वहाँ वहाँ वह धनवान पैदा होता है, महा धनवान पैदा होता है, ऐश्वर्यशाली होता हैं और आग से, पानी से, राजा से, चोर से, अथवा अप्रिय उत्तराधिकारी से किसी से भी उसे धन-हानि का खतरा नहीं रहता।
नमो बुद्धाय
Ref:
सत्पुरूष सुत्त : अन्गुत्तर निकाय
No comments:
Post a Comment