--------------------
स्वामीजी में एक बार ऐसी शक्ति आ गई थी कि वे इच्छा मात्र से ही रोग दूर कर सकते थे परंतु अपनी इस शक्ति से अवगत होकर भी वे उसे शायद ही कभी उपयोग में लाते थे इसलिए इसके विषय में उतनी जानकारियां नहीं हैं। इस विषय में उनकी जीवनी में केवल इतना ही लिखा है कि एक अमेरिकी महिला पर द्रवित होकर उन्होंने उसके 'हे फीवर' नामक बुखार को दूर कर दिया था। काफी दिनों बाद उक्त महिला ने स्वामीजी के एक शिष्य को पत्र लिखकर, घटना का इस प्रकार वर्णन किया था:--
"अपने एक मित्र के घर रहते समय मुझे बुखार हो गया। वह एक बड़े ही भयंकर किस्म का बुखार था ।मुझे पीड़ा से छटपटाते देखकर स्वामीजी ने पूछा ; तुम्हारी बीमारी दूर कर दूं? मैंने कहा यदि ऐसा कर सकें तो यह बड़े आनंद की बात होगी। यह बात सुनने के बाद वे मेरे सामने आ बैठे और मेरे दोनों हाथों को अपनी हथेली पर रखने को कहा। मेरे ऐसा कहने पर वे आंखें मूंदकर स्थिर भाव से बैठे रहे। धीरे-धीरे उनके दोनों हाथ शीतल होने लगे और ऐसा प्रतीत हुआ कि वे काठ के समान कठोर हो गए हैं। कुछ देर बाद उन्होंने आंखें खोलकर देखा और तेजी से घर से बाहर निकल गये। इसके साथ ही मैंने विस्मयपूर्वक देखा कि मेरा ज्वर बिल्कुल ही चला गया है।
20 मई 1894 को, स्वामी सारदानंद को लिखे पत्र में स्वामीजी ने कहा था:-"तुमसे एक अचरज की बात कहूं---
जब कभी तुम लोगों में से कोई बीमार हो जाए तो वह स्वयं अथवा तुममें से कोई उसकी मूर्ति का मन ही मन अच्छी तरह ध्यान करे और साथ ही सोचे 'वह निरोग है ,उसे कोई बीमारी नहीं'। देखोगे कि वह शीघ्र ही आरोग्यलाभ करेगा। अस्वस्थ व्यक्ति को बिना बताए भी तुम ऐसा कर सकते हो और हजार कोस दूर से भी यह क्रिया की जा सकती है।इसे याद रखना।"
स्वामीजी के भाई 'महेंद्रनाथ दत्त' अपनी पढ़ाई के दिनों में लंदन में रहते थे ।उन्होंने अपनी पुस्तक 'लंदने विवेकानंद' नामक बांग्ला ग्रंथ में लिखा है कि, स्वामीजी ने चिंतनशक्ति के द्वारा एक बार उनका बुखार भी ठीक किया था।अब तो यह शक्ति पराभौतिकी की दृष्टि से 'स्पिरिचुअल हीलिंग' के रूप में स्वीकार की जा रही है।
ॐ,
No comments:
Post a Comment