Saturday, 14 May 2022

आश्चर्य-अद्भुत सूत्र (अच्छरियअब्भुतसुत्तं)

🌷 आश्चर्य-अद्भुत सूत्र (अच्छरियअब्भुतसुत्तं) 🌷 

ऐसा मैने सुना (कि) एक समय भगवान् (बुद्ध) श्रावस्तीनगरीस्थित जेतवनाराम में अनाथपिण्डिक श्रेष्ठी द्वारा निर्मापित विहार में साधनाहेतु विराजमान थे। उस समय, भिक्षाचर्या के बाद भोजनकर्म से निवृत्त हो, उपस्थानशाला में एक जगह बैठे भिक्षुओं में तथागत के विषय में यह बात चल पड़ी - 

"आयुष्मानो! तथागत की महर्धिकता (चमत्कार) व महानुभावता (दूरदृष्टि) आश्चर्यमयी एवं अद्भुत है कि तथागत उन पूर्व बुद्धों के विषय में भी सब कुछ जानते हैं जो सांसारिक मायाजाल से छूट चुके हैं, जिनका संसार में आवागमन रुक चुका है, जो भवबन्धन से मुक्त हो चुके हैं, सभी दुःखों से दूर हो चुके हैं और निर्वाण प्राप्त कर चुके हैं; जैसे - वे इस नाम के थे, इस गोत्र के थे, उनका ऐसा शील था, ऐसा धर्माचरण था, उनकी ऐसी प्रज्ञा थी, उनकी ऐसी साधना थी।" 

उन भिक्षुओं में ऐसी बातें चल ही रही थी कि आयुष्मान् आनन्द ने उनसे कहा - "आयुष्मानो ! तथागत के सभी क्रियाकलाप आश्चर्यमय हैं, आश्चर्यमय धर्मों से युक्त हैं; अद्भुत हैं, अद्भुत धर्मों के सम्पृक्त हैं।" उन भिक्षुओं में ऐसी या ऐसी ही कोई दूसरी बातें चल रही थीं। 

तदनन्तर, भगवान् सायङ्काल ध्यानसाधना से उठकर जहाँ उपस्थानशाला थी, वहाँ पधारे और भिक्षुओं से पूछा- "भिक्षुओ! तुम इस समय किस विषय पर चर्चा कर रहे थे?" 

"भन्ते ! यहाँ भोजन के बाद उपस्थानशाला में एकत्र हुए हम लोगों में इसी विषय पर बात चल रही थी कि- 
'आयुष्मानो ! तथागत की महधिकता, अद्भुत धर्मों से सम्पृक्त हैं।' भन्ते ! यह चर्चा चल ही रही थी कि उसी बीच भगवान् यहाँ पधार गये।" 

तब भगवान् ने आनन्द को अभिमुख कर कहा- 
"तो, आनन्द ! तूं और भी आनन्दपूर्वक मेरे द्वारा कथित तथागत के इन आश्चर्यमय एवं अद्भुत धर्मों को स्मरण ले।" 

🌷 "भन्ते ! मैने भगवान् के श्रीमुख से सुना, और इसे ग्रहण किया कि- 'आनन्द! बोधिसत्त्व स्मृतिसम्प्रजन्ययुक्त हो तुषित लोक में उत्पन्न होते हैं।' जो ये बोधिसत्त्व स्मृतिसम्प्रजन्ययुक्त हो कर तुषित लोक में उत्पन्न होते हैं- यह भी भगवान् का आश्चर्यमय एवं अद्भुत धर्म है - ऐसा समझता हूँ। 

🌷 "भन्ते ! मैने भगवान् के ही श्रीमुख से सुना, और इसे ग्रहण किया कि- 'आनन्द! बोधिसत्त्व अपनी पूर्ण आयु तक तुषित काय (लोक) में ठहरे। भन्ते ! बोधिसत्त्व का यह जीवनपर्यन्त (पूर्ण आयु तक) तुषित लोक में ठहरना भी अद्भुत आश्चर्यमय धर्म समझता हूँ। 

🌷 "भन्ते ! मैने भगवान् के श्रीमुख से ही सुना, और इसे ग्रहण किया कि- 'आनन्द! स्मृति-सम्प्रजन्ययुक्त बोधिसत्त्व उस तुषित लोक से च्युत हो मातृकुक्षि (माता के गर्भ) में अवक्रान्त हुए।' 
भन्ते ! स्मृतिसम्प्रजन्ययुक्त बोधिसत्त्व का यह तुषित लोक से च्युत हो मातृगर्भ में अवक्रान्त होना भी भगवान् का आश्चर्यमय एवं अद्भुत धर्म है - ऐसा समझता हूँ। 

🌷 "भन्ते ! मैने भगवान् के श्रीमुख से सुना, और इसे ग्रहण किया कि- 'आनन्द! जब बोधिसत्त्व तुषित काय से मातृगर्भ में अवतरित होते हैं, तब देव-मार-ब्रह्मा सहित समग्र लोकों में, श्रमण-ब्राह्मण, देव-मनुष्य सहित सम्पूर्ण प्रजा में, देवताओं के तेज (अवभास) को भी अतिक्रान्त कर देने वाला अपरिमित महान् प्रकाश लोक में प्रादुर्भूत होता है। 

जो वे घने अन्धकार से पूर्ण तमसावृत दूसरे लोक हैं, जहाँ इतने तेजस्वी इतने महाप्रताप से सूर्य चन्द्रमा भी प्रकाश नहीं पहुँचा सकते वहाँ भी अपरिमित उदार प्रकाश फैल जाता है। उस समय वहाँ जो अन्य प्राणी उत्पन्न होते हैं वे भी उस प्रकाश के सहारे से एक दूसरे को पहचान लेते हैं कि यहाँ अन्य प्राणी भी उत्पन्न हुए हैं। और उस दिव्य प्रकाश से यह दशसहस्री लोकधातु (ब्रह्माण्ड) कम्पित प्रकम्पित सम्प्रवेधित हो उठती है।'
भन्ते ! यह भी भगवान् का आश्चर्यमय एवं अद्भुत धर्म है - ऐसा समझता हूँ। 

🌷 "भन्ते ! मैने भगवान् के श्रीमुख से ही सुना, और इसे ग्रहण किया कि- 'आनन्द! जब बोधिसत्त्व मातृगर्भ में अवतरित होते हैं उस समय चार देवपुत्र चारों दिशाओं से उस बोधिसत्त्व की रक्षा के लिये पहुँच जाते हैं कि कोई देवता या मुनष्य इस बोधिसत्त्व को या बोधिसत्त्व की माता को किसी तरह की हानि न पहुंचा दे।' भन्ते! यह भी भगवान् का आश्चर्यमय एवं अद्भुत धर्म है - ऐसा समझता हूँ। 

🌷 "भन्ते ! मैने भगवान् के श्रीमुख से सुना, और इसे ग्रहण किया कि- 'आनन्द! जब बोधिसत्त्व माता की कोख में अवतरित होते हैं उस समय बोधिसत्त्व की माता स्वभाव से उतनी शीलसम्पन्न हो जाती हैं कि वह हिंसा, चोरी, व्यभिचार, असत्यभाषण एवं मद्यपान आदि दुर्गुणों से पूर्णत: विरत रहती हैं।' भन्ते ! मैं यह भी भगवान् का आश्चर्यमय एवं अद्भुत धर्म है - ऐसा समझता हूँ। 

🌷 "भन्ते ! मैने भगवान् के श्रीमुख से सुना, और इसे ग्रहण किया कि- 'आनन्द! जिस दिन बोधिसत्त्व माता के गर्भ में अवक्रान्त होते हैं, उसी दिन से बोधिसत्त्व की माता के मन में किसी भी पुरुष के प्रति कामोत्पाद नहीं होता, न कोई पुरुष उनकी ओर कामरागचित्त से आँख उठाकर देखने का साहस ही करता है।' भन्ते! यह भी भगवान् का अद्भुत धर्म ही है-ऐसा मैं समझता हूँ। 

🌷 "भन्ते ! मैने भगवान् के श्रीमुख से सुना, और इसे ग्रहण किया कि- 'आनन्द! जब बोधिसत्त्व माता की कुक्षि में आते हैं तभी से बोधिसत्त्वमाता पञ्चविध कामगुणों से तृप्त रहती हैं, उसे उनकी कोई कमी नहीं रहती।' भन्ते ! भगवान् का आश्चर्यमय एवं अद्भुत धर्म है - ऐसा समझता हूँ। 

🌷 "भन्ते ! मैने भगवान् के श्रीमुख से सुना, और इसे ग्रहण किया कि- 'आनन्द! जिस दिन बोधिसत्त्व माता की कोख में आते हैं उसी दिन से उस माताश्री को किसी प्रकार का रोग (आबाध) नहीं होता, उसके शरीर में कोई पीड़ा नहीं होती, वह सब तरह से स्वस्थ सुखी रहती है। और वह गर्भगत बोधिसत्त्व को सभी अङ्गों प्रत्यङ्गों के साथ सभी स्वस्थ इन्द्रियों के साथ बढ़ते हुए देखती रहती है। 

आनन्द ! जैसे शुभ्र, उत्तम जाति की, अठकोणी, भलीभाँति चमकायी गयी वैदूर्यमणि हो, उसमें नीला, पीला, लाल, श्वेत, नारङ्गी (पीत या पाण्डु) रंग का सूत पिरोया गया हो; उसे हाथ में लेकर कोई आँखों वाला देखे- 'यह वैदूर्यमणि है इसमें नीला सूत पिरोया है; इसी प्रकार आनन्द! बोधिसत्त्व को गर्भ में बढ़ते हुए देखती रहती है।' भन्ते ! भगवान् का आश्चर्यमय एवं अद्भुत धर्म है - ऐसा समझता हूँ। 

🌷 "भन्ते ! मैने भगवान् के श्रीमुख से सुना, और इसे ग्रहण किया कि- 'आनन्द! बोधिसत्त्व के माता की कोख से बाहर आने के सप्ताह भर बाद, जब बोधिसत्त्व की माता यहाँ प्राणत्याग करती है तो वह सीधे तुषित देवलोक में उत्पन्न होती हैं।' भन्ते ! यह भी भगवान् का आश्चर्यमय एवं अद्भुत धर्म है - ऐसा समझता हूँ। 

🌷 "भन्ते ! मैने भगवान् के श्रीमुख से सुना, और इसे ग्रहण किया कि- 'आनन्द! जैसे अन्य साधारण स्त्री को नवें या दसवें मास में बालक गर्भ से प्रसूत होता है वैसे बोधिसत्त्व माता बोधिसत्त्व का प्रसव नहीं करतीं। वे दस मास पूर्ण होने पर ही प्रसूता होती हैं।' भन्ते ! यह भी भगवान् का आश्चर्यमय एवं अद्भुत धर्म है - ऐसा समझता हूँ। 

🌷 "भन्ते ! मैंने भगवान् के श्रीमुख से ही सुना है- 'आनन्द ! जैसे अन्य स्त्रियाँ बैठकर या लेटकर प्रसव करती हैं, वैसे बोधिसत्त्व की माता नहीं करती। वह तो स्थित (खड़ी) रहती हुई ही प्रसव करती हैं।' भन्ते! यह भी भगवान् का आश्चर्यमय एवं अद्भुत धर्म है - ऐसा समझता हूँ। 

🌷 "भन्ते ! मैने भगवान् के श्रीमुख से सुना, और इसे ग्रहण किया कि- 'आनन्द! जब बोधिसत्त्व माता की कोख से बाहर आते हैं तो पहले उन्हें देवता अपने हाथों में लेते हैं, फिर मनुष्य।' भन्ते ! यह भी भगवान् का आश्चर्यमय एवं अद्भुत धर्म है - ऐसा समझता हूँ। 

🌷 “भन्ते ! मैने भगवान् के श्रीमुख से ही सुना है कि आनन्द ! जब बोधिसत्त्व गर्भ से बाहर आते हैं तो उस समय पृथ्वी का स्पर्श होने से पूर्व ही चार देवपुत्र उन्हें अपने पवित्र हाथों में लेकर माता के सम्मुख प्रस्तुत करते हैं- देवी! आप प्रसन्न हों, आप को महाप्रतापी पुत्र हुआ है।' भन्ते ! यह भी भगवान् का आश्चर्यमय एवं अद्भुत धर्म है - ऐसा समझता हूँ। 

🌷 "भन्ते ! मैने भगवान् के श्रीमुख से सुना, और इसे ग्रहण किया कि- 'आनन्द! जब बोधिसत्त्व अपनी माता की कोख से बाहर आते हैं तब वे साफ स्वच्छ से ही निकलते हैं, वे अन्य साधारण बालकों की तरह मैले, गर्भोदक या रक्त या श्लेष्मा से लिपटे नहीं रहते, अपितु शुद्ध विशद (स्वच्छ) ही निकलते हैं।' 

आनन्द ! जैसे कोई मणिरत्न काशी के बने कौषेय वस्त्र में लिपटा न उस वस्त्र में चिपकता है, न वह वस्त्र ही उस मणिरत्न पर चिपकता है; क्योंकि वे दोनों ही सुविशुद्ध हैं; उसी तरह आनन्द ! जब बोधिसत्त्व अपनी माता की कोख से निकलते हैं तो शुद्ध विशुद्ध ही निकलते हैं।' भन्ते ! यह भी भगवान् का आश्चर्यमय एवं अद्भुत धर्म है - ऐसा समझता हूँ। 

🌷 "भन्ते ! मैने भगवान् के श्रीमुख से सुना, और इसे ग्रहण किया कि- 'आनन्द! जब बोधिसत्त्व माता की कोख से बाहर आते हैं, उसी समय आकाश से जल की दो धाराएँ गिरने लगती हैं- एक ठण्डे जल की और दूसरी गरम जल की, उनसे बोधिसत्त्व तथा उसकी माता की स्नानक्रिया या प्रक्षालनक्रिया सम्पन्न होती है।' भन्ते ! यह भी भगवान् का आश्चर्यमय एवं अद्भुत धर्म है - ऐसा समझता हूँ। 

🌷 "भन्ते ! मैने भगवान् के श्रीमुख से सुना, और इसे ग्रहण किया कि- 'आनन्द! सद्यः उत्पन्न बोधिसत्त्व अपने श्रीचरणों को पृथ्वी पर समतल रखकर उत्तर दिशा की ओर मुख कर, सात पदक्रम (कदम) चलते हैं, (देवताओं द्वारा) श्वेत छत्र धारण कर सब दिशाएँ देखते हुए यह गम्भीर (आर्षभी) वाणी बोलते हैं -
 
🌷अग्गोहमस्मि लोकस्स - लोक में मैं अग्र हूं।🌷
🌷जेट्ठोहमस्मि लोकस्स - लोक में मैं ज्येष्ठ हूं।🌷
🌷सेट्ठोहमस्मि लोकस्स - लोक में मैं श्रेष्ठ हूं।🌷
🌷अयमन्तिमा जाति- यह मेरा अंतिम जन्म है।🌷
🌷नत्थि दानि पुनब्भवो- अब एक बार भी पुनर्जन्म नहीं होगा।🌷

🌷 "भन्ते ! मैने आप के श्रीमुख से ही सुना है- 'आनन्द ! जब बोधिसत्त्व माता की कोख से बाहर आते हैं तब देव, मार ब्रह्मा सहित समग्र सृष्टि सम्प्रवेधित हो उठती हैं।' भन्ते ! यह भी भगवान् का आश्चर्यमय एवं अद्भुत धर्म है - ऐसा समझता हूँ। 

🌷 “इसी तरह, आनन्द! तुम तथागत के इस अद्भुत आश्चर्यमय धर्म को भी अपने मन में बैठा लो। 

आनन्द! यहाँ तथागत को सभी वेदनाएँ (अनुभव) पहले से विदित होती हुई ही उत्पन्न होती हैं, स्थित होती हैं, अस्त होती हैं; इसी प्रकार सभी संज्ञाएँ, सभी वितर्क, विदित होते हुए ही अस्त होते हैं।' आनन्द! यह भी भगवान् का आश्चर्यमय एवं अद्भुत धर्म है - ऐसा समझता हूँ। 

🌷 'भन्ते ! भगवान् को ये जो सभी वेदनाएँ, सभी संज्ञाएँ, सभी वितर्क, विदित होते हुए ही अस्त होते हैं, यह भी भगवान् का आश्चर्यमय एवं अद्भुत धर्म है - ऐसा समझता हूँ। 

आयुष्मान् आनन्द ने यह कहा। शास्ता ने आनन्द (की इस बात) का समर्थन किया। सामने बैठे सभी भिक्षुओं ने आयुष्मान् आनन्द के इस भाषण का अभिनन्दन किया। 

आश्चर्यअद्भुतसूत्र समाप्त॥
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मज्झिमनीकाय ।
विपश्यना विशोधन विन्यास ॥ 

भवतु सब्ब मंङ्गलं !! 
     🙏🙏🙏

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