Friday, 8 April 2022

मारवाड़ (राजस्थान) का घुड़ला पर्व

मारवाड़ (राजस्थान) का घुड़ला पर्व
*********************************
राजस्थान के मारवाड़ क्षेत्र में होली के बाद एक पर्व मनाया जाता है जिसे "घुड़ला पर्व" कहते है. इसमें कुँवारी लडकियाँ अपने सर पर एक छेददार मटका उठाकर, उसके अंदर दीपक जलाकर गांव और मौहल्ले में घूमती है और साथ में "घर घर घुड़लो, घुमेला जी घुमेला" गीत गाती है. इस पर्व को मनाने वाले लोगों तक को नहीं पता है कि इसे क्यों मनाते है.

आगरा में जालिम और अय्यास राजा अकबर के शासन काल में, अकबर और उसके सरदारों ने भारत की आम जनता पर बहुत जुल्म किये थे. हिन्दुओं की बहु-बेटियों को जबरन उठा ले जाना उनका धर्म परिवर्तन कराकर अपने हरम में ले जाना, इनका शौक था. आज जो इनकी तारीफ़ करते हैं उनको पता भी नहीं है कि उनकी माँओं पर कितने जुल्म हुए है

उस जालिम और अय्यास अकबर के राज में मारबाड़ के इलाके में अकबर का एक सरदार था घुड़ला खान. वह भी अपने राजा की तरह जालिम और अय्यास था. एक बार नागोर जिले के, पीपाड़ कसबे के एक गाँव "कोसाणा" में लगभग 200 कुंवारी कन्यायें गणगोर पर्व की पूजा कर रही थी. इन व्रती कन्याओं को मारवाड़ी भाषा में तीजणियां कहते है.

ये तीजणियां गाँव के बाहर मौजूद तालाब पर पूजन कर रहीं थी, तभी उधर से वो मुसलमान सरदार घुडला खान अपनी फ़ौज के साथ निकला. उसकी गंदी नज़र उन बच्चियों पर पड़ी तो उसकी वंशानुगत पैशाचिकता जाग उठी. उसने सभी बच्चियों का वहां से अपहरण कर लिया. जब गाँव वाले ने विरोध किया तो उसने उनको मौत के घाट उतार दिया

गाँव के कुछ घुड़सवारों ने जोधपुर के राव सातल सिंह राठौड़ जी को इसकी सुचना दी. पता चलते ही राव सातल सिंह जी और उनके घुड़सवार सैनिक घुड़ला खान को रोकने निकल पड़े. कुछ ही समय मे उन्होंने घुडला खान को रोक लिया. राव सातल सिंह राठौड़ को देखकर घुडला खान का चेहरा पीला पड़ गया उसने उनकी वीरता के बारे मे सुन रखा था.

फिर भी उसने अपने आपको संयत करते हुये कहा, राव साहब तुम मुझे नही दिल्ली के बादशाह अकबर को रोक रहे हो इसका ख़ामियाज़ा तुम्हें और जोधपुर को भुगतना पड़ सकता है. इस पर राव सातल सिंह बोले - दुष्ट पापी, हमारा क्या होगा ये तो बाद में देखा जाएगा लेकिन फिलहाल अभी तो में तुझे तेरे इस गंदे काम का ख़ामियाज़ा भुगता देता हूँ.

फिर क्या था राजपुतों की तलवारों ने दुष्ट मुग़लों के ख़ून से प्यास बुझाना शुरू कर दिया था. संख्या मे अधिक होने के बाबजूद मुग़ल सेना के पांव उखड़ गये. राजपूत वीरों ने भागती हुई मुग़ल सेना का पीछा कर उनका ख़ात्मा कर दिया. राव सातल सिंह ने तलवार के वार से घुडला खान का सिर धड़ से अलग कर दिया और सभी बच्चियों को मुक्त करवा दिया.

इस युद्ध में वीर सातल सिंह भी बुरी तरह से घायल हो गए थे लेकिन फिर भी उसी अवस्था में वे उन बच्चियों को उनके गाँव में पहुंचाने गए. उन्होंने घुड़ला खान का सर भी उन गाँव वालों को सौंप दिया. बच्चियों को उनके गाँव में पहुंचाने के बाद वे भी स्वर्ग सिधार गए. गाँव वालों ने पूरे सम्मान के साथ, तालाब के किनारे वीर सातल सिंह का अंतिम संस्कार किया.

गांव वालों ने दुष्ट घुडला खान का सिर बच्चियों को सौंप दिया. बच्चियों ने एक घड़े मे बहुत सारे छेद करके उस घड़े में घुडला खान के सर को रखा और उस घड़े के ऊपर एक दीपक रखा और फिर पुरे गाँव मे घुमाया. उस दिन हर घर मे भी दिए जलाकर रोशनी की गयी. तब से राजस्थान (खासकर मारवाड़) में यह घुड़ला पर्व मनाया जाता है.

हमारे पूर्वजों द्वारा इस घुड़ला पर्व को शुरू करने का यही उद्देश्य था कि- लोग हिन्दु शेर राव सातल सिंह राठौर जी को सदियों तक सम्मान के साथ याद रखे तथा घुड़ला खान को धिक्कारते रहें. लेकिन हमारे देश के वामपंथी गद्दार आज भी इस कोशिश में लगे हैं कि - कही तरह से उस अत्याचारी घुड़ला खान को घुड़ला बाबा या घुड़ला देवता बना दिया जाए.

वीर राव सातल सिंह जी राठौर की जय , नीच घुड़ला खान मुर्दाबाद

साभार Naveen Verma जी ... !

No comments:

Post a Comment

Reminiscenses Of Swami Vivekananda

He paced up and down our outside dining room veranda, talking of Krishna and the love of Krishna and the power that love was in ...