मां ,
मैं यहां हूं.
एक बार ठाकुर, मथुरबाबू के कोलकाता स्थित निवास में
रह रहे थे। रात के 2:00 बजे उन्होंने सहसा मथुरबाबू से कहा," मैं दक्षिणेश्वर वापस जाना चाहता हूं।
मथुर ने कहा," बाबा इस समय मैं गाड़ी कहां से पाऊंगा?
भोर होने पर आप जा सकते हैं।
ठाकुर ने कहा, "यदि तुम गाड़ी नहीं ले आओगे, तो मैं अभी पैदल ही चला जाऊंगा। मथुरबाबू बाध्य होकर अपने गाड़ीवान के पास गए और उसे ठाकुर को लेकर दक्षिणेश्वर जाने के लिए तैयार होने को कहा।
कालीमंदिर पहुंचकर ठाकुर ने कहा ,"मां मैं यहां हूं।" जगन्माता ही उनकी सर्वस्व थीं।
ठाकुर ऐसे भाव में रहते थे कि जगन्माता को समर्पित किए बिना कुछ ग्रहण नहीं कर सकते थे। यदि कोई ठाकुर को
नया वस्त्र उपहार में देता तो वे पहले उसे मंदिर में मां को अर्पित करते और फिर प्रसादस्वरूप ग्रहण करते थे। इस प्रकार ठाकुर ने दिखाया कि इस संसार में रहते हुए भी योग में कैसे स्थित रहा जा सकता था।
ठाकुर कहते थे ,"गौरांग और मैं एक ही हैं। एक बार वे गुनगुनाते हुए 'गौर' 'गौर' का उच्चारण कर रहे थे। एक व्यक्ति ने पूछा,"महाराज, 'मां' का नाम उच्चारण करने के बजाय आप 'गौर' 'गौर' क्यों कह रहे हैं ? ठाकुर ने उत्तर दिया,' मैं क्या कर सकता हूं? तुम लोगों के पास पत्नी, पुत्र, पुत्री,
धन, घर ,आदि अनेक संबल हैं। परंतु मेरे तो एकमात्र संबल भगवान ही हैं । इसी कारण मैं कभी गौर ,कभी मां ,तो कभी राम ,कृष्ण ,काली ,शिव ,कहता हूं । इसी प्रकार मेैं अपना समय बिताता हूं।"..
ठाकुर ने शास्त्रों में वर्णित सत्स्वरूप परब्रह्म की एक या दो बार ही नहीं अपितु सर्वदा अनुभूति की थी। हम लोगों ने ठाकुर के साथ रहकर उन्हें चौबीसों घंटे ध्यानपूर्वक देखा है। वे ईश्वरीय-बोध से कभी वियुक्त नहीं रहते थे। रात में बिस्तर पर लेटे हुए भी वे माँ, माँ का उच्चारण करते थे। उनको बहुत कम नींद आती थी। वे कभी भी लगातार 15 से 30 मिनट
से अधिक नहीं सोते थे। किसी साधारण जीवकोटि ईश्वरद्रष्टा के लिए ऐसा संभव नहीं है। उन्होंने घोषणा की कि उनकी
देह में सच्चिदानंद प्रभु ही अभिव्यक्त हुए हैं। एक दिन उन्होंने मुझसे कहा, " ईशा, चैतन्य और मैं एक ही सत्ता है।"...
ॐ,
मास्टर महाशय की स्मृतिकथा
(श्रीरामकृष्णदेव जैसा हमने उन्हें देखा;
स्वामी चेतनानंद )
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