Monday, 22 August 2022

श्री सत्यदत्तव्रत पूजा

🙏🏻  नमो गुरवे वासुदेवाय 🙏🏻

*श्री सत्यदत्तव्रत पूजा*

हिंदी अनुवाद 

श्री दत्त भगवन के प्रातःस्मरणीय चतुर्थ अवतार परम्हांस परिव्राजकाचार्य श्री वासुदेवानंद सरस्वती स्वामी महाराज ने करुणामय अंतःकरण से कलि के प्रभाव से भ्रमित, दुःखी जनों का कल्याण करने "सत्यदत्तव्रत" प्रकट किया है। यह एक बहुत ही प्रभावशाली व्रत है। सारे दुःख और संकटों का नाश करनेवाला यह दिव्य अस्त्र है। यह व्रत करने से अब तक बहुत सारे लोग सुखी हो चुके है । 

श्री दत्तभक्तों के लिए व्रत तयार करने की श्री दत्तप्रभू की आज्ञा होने के कारण प. प. महाराज ने इस व्रत की रचना की। इस  व्रत की पूजा बाकी व्रतों की तरह ही है (जैसे की सत्य नारायण व्रत)। इस में से वैदिक मंत्र भी बाकी व्रतों की तरह ही है। पर पुराणोक्त मंत्र श्री स्वामी महाराज ने स्वयं  बनाये है। इसलिए पूजाविधी करनेवाले पुरोहित को बुला कर वेदोक्त और पुराणोक्त मंत्रों से शास्त्रोक्त पूजा करनी चाहिए। 

पुजा का साहित्य : हलदी, कुंकूम, गुलाल, अभिर, रंगोली, गेहू, चावल, पान के पत्ते, मिश्री शक़्कर, पांच फल, अगरबत्ती, कर्पूर, दिया, समई, चौरंग, यज्ञोपवीत, वस्त्र, फुल, तुलसी, पंचपल्लव (पीपल, गूलर, पाकड़ और बड़ या आम, जामुन, कैथ, बेल और बिजौरा के पत्ते), दुर्वा, दो कलश, दो पूजा की थालियाँ, पूजा का प्याला और चमच, इत्र, भगवन के स्नान के लिए गरम पानी, पुरोहित को देने के लिए दाक्षिणा

प्रसाद नैवेद्य : शक्कर, सूझी, घी, दूध (सव्वापट प्रमाण), इलायची, केसर, सूखे अंगूर, बादाम, इत्यादी से हलवे का प्रसाद  बनाये। पंचामृत-  दूध, दही, घी, शहद, शक्कर.

इस व्रत में तीन कथाए बताई है। पहली कथा एक अनामिक मुमुक्षु ब्राह्मण की है जिसे श्री दत्त प्रभु ने दर्शन देकर 'मुक्ती के लिए क्या करना चाहीये?' यह बताया है। दुसरी कथा आयु राजा की है, जिसे सत्यदतव्रत करने से पुत्र होता है और उस पर आये हुए संकट टल जाते है। तिसरी कथा में हरिशर्मा नामक अनेक रोगों से पीड़ित ब्राम्हण कुमार यह व्रत करने से ठीक हो जाता है। अंत में, शौनकादी ऋषीयों को भी यह व्रत करने से श्री दत्तप्रभु के दर्शन होने का वर्णन है। इस कथा में श्री स्वामी महाराज ने स्वधर्माचरण और ईश्वर की भक्ती करने के मुद्दों पर जोर दिया है। इसी बात पर यह व्रत बाकी व्रतों से हट के है।

कृति :  व्रत करनेवाले यजमान तील और आमले का चूर्ण शरीर को लगाकर स्नान करे और धोये हुए सफ़ेद वस्त्र या पूजा करने के लिए इस्तमाल होनेवाले पवित्र वस्त्र पहन कर पूजा के पावन स्थान पर आ जाये। पूजा का सारा सामान तैयार कर पुजा के स्थान पर रखे। पूजा की रचना जहाँ की गयी है उस चौरंग के आसपास रंगोली सजाए। हो सके तो उस चौरंग को  कर्दली के पेड़की टहनियाँ बांधे। उपर छत की तरफ आम की डाली लगाए। घी का दिया जलाये। पहले भगवान को और फिर वहां उपस्थित बड़ों को प्रणाम कर आसन ग्रहण करे। खुद के माथे पर  कुंकूम तिलक लगाए और फिर सत्यदत्त पूजा जीस संकल्प के लिए की जा रही है उसे याद करे। फिर एक पूजा की थाली में चावल लेकर उस पर सुपारी रख कर प्रथम श्री गणेशजी का षोडशोपचारों से पूजन करे। नित्यपूजा की तरह आसन विधी, शडगन्यास और फिर कलश, शंख, घंटी, दिया, इन सारी चीजों की  कुंकुम, फूल, अक्षता, इत्यादि लगा कर पूजा करे। फिर मंत्रों से पुजासाहित्य और शरीर की शुद्धी करे। उसके बाद निचे दिए हुए क्रम में पूजा करे:

१) महागणपती पूजन
२) वरुण स्थापनपूजन, वरुण पूजन
३) पुण्याह वाचन
४) दिक्पाल स्थापना
५) सत्यदत्तपूजा
६) मंत्रपुष्प व राजोपचार
७) प्रार्थना
८) दकाराद्यष्टोत्तरशत नामावली
९) सत्यदत्त पोथी कथा वाचन

यह पूजा अत्यंत प्रभावी है और यह व्रत करने से चारो पुरुषार्थ साध्य होते है।

।। भक्तवत्सल भक्ताभिमानी राजाधिराज श्रीसदगुरुराज वासुदेवानंद सरस्वती स्वामी महाराज की जय ।।

🙏🏻  अवधूत चिंतन श्री गुरूदेव दत्त 🙏🏻

No comments:

Post a Comment

Reminiscenses Of Swami Vivekananda

He paced up and down our outside dining room veranda, talking of Krishna and the love of Krishna and the power that love was in ...