🌷 समाधान : ध्यान में उबासी, आंख से पानी 🌷
✍️ .....यह जो कभी-कभी ध्यान में बैठते ही उबासी आ जाती है और आंख में पानी आने लगता है, यह अच्छे लक्षण हैं। दिनभर के लोक-संपर्क और काम-काज का जो प्रभाव ऊपर-ऊपर पड़ा होता है, वह साधना में बैठते ही किसी-न-किसी रास्ते निकल कर मुक्त हुआ चाहता है। ऐसी अवस्था में उबासी और आंखों से पानी आना बहुत स्वाभाविक है। उसे आने देना चाहिए, रोकने की जरा-भी कोशिश नहीं करनी चाहिए...... 🙏🙏🙏
📃 वाराणसी से एक नये साधक का पत्र -
"...मेरा अभ्यास चल रहा है पूर्वाह्न और अपराह्न प्रायः प्रतिदिन आनापान और विपश्यना कर रहा हूं। कभी दिनचर्या व्यस्त रहती है और थकान आ जाती है तो आनापान करके ही उठ जाता हूं, उबासी आने लगती है और आंख से पानी आने लगता है। ध्यान स्थिर नहीं हो पाता, ऐसे में जबर्दस्ती बैठे रहना नहीं बनता।
एक अंतर आया है - प्रतापगढ़ में मैं जहां घंटों भी थोड़ा हिलडुल कर एक अधिष्ठान में बैठा रह सका, वहां अब पंद्रह मिनट से ज्यादा नहीं बैठ पा रहा हूं। ऐसा नहीं कि बैठ सकता ही नहीं, लेकिन बैठ नहीं रहा हूं। आनापान स्थिर होने पर एक बार पूरी काया की अनुपश्यना होने पर प्रायः उठ जाता हूं...."
उपरोक्त पत्र का पूज्य गुरुजी की ओर से उत्तर -
🌷 “आप अपने अभ्यास की नियमितता न टूटने दें। प्रथम एक-डेढ़ वर्ष तक भिन्न-भिन्न प्रकार की बाधाएं आती हैं जो कि नियमितता नहीं रहने देती। किसी प्रकार भी उन बाधाओं का सामना करते हुए साधक अपना अभ्यास कायम रखता है तो स्थिरता स्वयमेव आ जाती है। फिर अधिक कठिनाइयां नहीं रहतीं।
यह जो कभी-कभी ध्यान में बैठते ही उबासी आ जाती है और आंख में पानी आने लगता है, यह अच्छे लक्षण हैं। दिनभर के लोक-संपर्क और काम-काज का जो प्रभाव ऊपर-ऊपर पड़ा होता है, वह साधना में बैठते ही किसी-न-किसी रास्ते निकल कर मुक्त हुआ चाहता है। ऐसी अवस्था में उबासी और आंखों से पानी आना बहुत स्वाभाविक है। उसे आने देना चाहिए, रोकने की जरा-भी कोशिश नहीं करनी चाहिए।
जब उबासियां आनी बंद हो जायं और पानी आना बंद हो जाय, उसके बाद ही अच्छा ध्यान लगेगा, परंतु जितनी देर यह क्रम चल रहा हो उसे रोककर ध्यान करना चाहेंगे तो कठिनाई पैदा होगी। यह जो ऊपरी-ऊपरी सतह पर नये-नये तनाव-खिंचाव पैदा हुए उनको सुबह-शाम निकाल लेना ही हमारे लिए कल्याण की बात है। प्रारंभिक दस-पंद्रह मिनट यदि इन्हीं से उलझना पड़े तो कोई हर्ज नहीं। उसके बाद ही ध्यान ठीक से लगता है। अतः उकताकर पंद्रह मिनट में ही उठ जाना उचित नहीं है....।”
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पुस्तक: लोकमत (भाग-2)
विपश्यना विशोधन विन्यास ॥
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✺भवतु सब्ब मंङ्गलं✺
✺भवतु सब्ब मंङ्गलं✺
✺भवतु सब्ब मंङ्गलं✺
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