Monday, 8 August 2022

अहम्-शून्यता

अहम्-शून्यता

श्रीमाँ सारा जीवन निर्विचार कृपा किये गईं। कितने ही पतित, स्त्री-पुरुषों को उन्होंने गोद में खींच लिया। कितने ही अभागों और अकिंचनों  को मुक्ति दे दी‌। उनकी कृपा
अहैतुकी थी, बदले में उन्होंने कुछ भी नहीं चाहा। केवल एक बात वे अपनी संतानों से चाहती थीं और वह यह थी कि वे लोग सब अवस्थाओं में उन्हें मन में बनाए रखें।...

एक 'साधु-शिष्य' उत्तराखंड के दुर्गम तीर्थों का भ्रमण करके श्रीमाँ के चरण-दर्शन करने उपस्थित हुये। माँ ने पूछा , "तुम कहां कहां घूम आए ?" 
उन्होंने कहा,-- "केदारनाथ, बद्रीनारायण, गंगोत्री, यमुनोत्री
,यह सब।"
श्रीमाँ ने सभी तीर्थों को हाथ जोड़कर प्रणाम किया।फिर पूछा ,"जहां-जहां गए ,वहां क्या मेरे उद्देश्य से एक-एक अंजुलि जल दिया? शिष्य, सिर झुका कर चुप हो गए‌। उनका ह्रदय पछतावे से दग्ध हो उठा।
माँ ने कहा--,"जहां ,जहां जाओ,;मेरे उद्देश्य से तीन तीन अंजली जल देना ,-- बस इतना ही तो उन्होंने अपनी संतानों से चाहा था।"...

श्रीमाँ ने अपने जीवन से अहं को पूरी तरह मिटा डाला था। दक्षिणेश्वर में ठाकुर के साथ जीवन के तेरह वर्ष नौबतखाने में बिताकर, उनकी सेवा और सानिध्य के माध्यम से ,उनमें 'श्रीरामकृष्ण-तल्लीनता' का जो भाव आया था ,वही उनके 'अहं-नाश' में सहायक बना। ठाकुर ही सर्वमय हैं ‌। सारे देवी-देवता, गुरु ,इष्ट,--सब कुछ वे ही हैं।.. सारदादेवी 'श्रीरामकृष्ण-पर्याप्तकाम' हो गयी थीं।.. 
श्रीमाँ ने शत-शत लोगों को दीक्षा दी ,पर सबके सामने श्रीरामकृष्ण को ही 'जाज्वल्यमान' रखा। कहा,.."ठाकुर ही गुरु है ,ठाकुर ही इष्ट हैं, ठाकुर को पुकारो, ठाकुर को पकड़ो।"...

श्रीमाँ उस समय 'बागबाजार-मठ' में थीं। एक दिन उनकी भतीजी 'नलिनी' ने पूछा ; "अच्छा बुआ, तुम्हें लोग जो अंतर्यामिनी कहते हैं ,सो क्या तुम सचमुच ही अंतर्यामिनी हो ?.. सुनकर श्रीमाँ जरा हँस पड़ीं। फिर भक्तों को लक्ष्य करते हुए कहने लगीं  "मैं क्या हूं भला? ठाकुर ही तो सब कुछ हैं । तुम लोग ठाकुर के पास यही कहो (हाथ जोड़कर उन्होंने ठाकुर को प्रणाम किया) कि मुझमें अहं-भाव न
 आये।"...
हजारों लोग श्रीमाँ को देवी-ज्ञान से पूजते थे । तुम भगवती हो ,जगज्जननी हो ,रुद्राणी हो ,--यह कह-कह कर ,उनके चरणों पर लोटते थे ,पर आश्चर्य उनमें तनिक भी अहंकार नहीं था। इतना मान सम्मान पचा पाना क्या मनुष्य की शक्ति में है ? उनका वह 'भगवतीत्व' इस 'अहं-नाश' में ही है।...

ॐ,

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