🌷अरहंत सोपाक🌷
सोपाक नाम का एक पुत्र चार माह की अवस्था में ही अनाथ हो गया। पिता चल बसे । चाचा ने बड़े बेमन से उसे पाला । गरीबी के कारण बालक उसके लिए बोझ-स्वरूप था। चाचा बड़े क्रुद्ध स्वभाव का था। इस अनाथ बच्चे के कारण उसका चिड़चिड़ापन बढ़ता चला गया ।
सोपाक जब सात वर्ष का हुआ, तो किसी एक अप्रिय घटना को लेकर चाचा उसे श्मशान ले गया और एक मुर्दे शव के साथ निर्दयतापूर्वक बांध दिया, ताकि मुर्दे को खाते हुए सियार उसे भी चीर-फाड़ कर खा जायँ। बच्चे के करुण-क्रंदन का उस पाषाण-हृदय पर कोई असर नहीं हुआ।
परंतु भगवान बुद्ध ने यह घटना देखी, तो करुणा-विगलित होकर सोपाक को छुड़ा कर विहार में ले आने को कहा l वहीं उसकी प्रव्रज्या और फिर उपसंपदा हुई। आगे चल कर सोपाक अरहंत हुए।
उस समय के उनके उद्गार हैं -
*"जातिया सत्तवस्सोहं, लद्धान उपसम्पदं"*
जीवन के सातवें वर्ष में मुझे उपसंपदा मिली।
*"धारेमि अन्तिमं देहं"*
आज मैं जीवन्मुक्त हूं, क्योंकि यह मेरा अंतिम शरीर है। अब पुनर्जन्म होने वाला नहीं है।
अरहंत सोपाक की वाणी में प्रसन्नता और कृतज्ञता झलक पड़ी जब उन्होंने कहा-
*"अहो धम्मसुधम्मता" - अहो! धर्म की सुधर्मता तो देखो!*
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